मध्यप्रदेश

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शिवपुरी में शनिवार को वैष्णव समाज के लोगो ने मनाई श्री रामानंदाचार्य जी महाराज की जन्म जयंती - Shivpuri

 


मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में शनिवार को वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो ने बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से जगतगुरू वैष्णव बैरागी समाज के संस्थापक स्वामी गुरूदेव रामानंदाचार्य जी की जन्म जयंती मनाई गई जिसमें जगतगुरू स्वामी गुरूदेव रामानंदाचार्य जी की तस्वीर पर पुष्वमाला पहनाकर सभी वैष्णव समाज के लोगो ने गुरूदेव के विचारों को याद करते हुये अपने अपने उद्यवोदन दिये और बड़े ही शांति पूर्ण तरके से गुरूदेव की जन्म जयंती को मनाया इस कार्यक्रम में वैष्णव समाज के जिला अध्यक्ष रमेश वैष्णव, बालकदास गुरूजी, रोहित वैष्णव, राधेश्यम वैष्णव, सोनू वैष्णव, दीपक वैष्णव, आरके वैष्णव, धर्मवीर वैष्णव सहित अनेक लोग उपस्थित रहे। 



स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य ने हिन्दू धर्म को संगठित और व्यवस्थित करने के अथक प्रयास किए। उन्होंने वैष्णव संप्रदाय को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। सोचें जिनके शिष्य संत कबीर और रविदास जैसे संत रहे हों तो वे कितने महान रहे होंगे।


बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिन्दू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। हिन्दुओं पर बेवजह के कई नियम तथा बंधन थोपे जाते थे। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया। अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंद कर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिन्दू तरीके से रहने की छूट दे दी।


जन्म : माघ माह की सप्तमी संवत 1356 अर्थात ईस्वी सन 1300 को कान्यकुब्ज वैष्णव  ब्राह्मण के कुल में जन्मे रामानंद जी के पिता का नाम पुण्य वैष्णव  तथा माता का नाम सुशीला देवी था। वशिष्ठ गोत्र कुल के होने के कारण वाराणसी के एक कुलपुरोहित ने मान्यता अनुसार जन्म के तीन वर्ष तक उन्हें घर से बाहर नहीं निकालने और एक वर्ष तक आईना नहीं दिखाने को कहा था।


दीक्षा : आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार होने के पश्चात उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्य जी से दीक्षा प्राप्त की। तपस्या तथा ज्ञानार्जन के बाद बड़े-बड़े साधु तथा विद्वानों पर उनके ज्ञान का प्रभाव दिखने लगा। इस कारण मुमुक्षु लोग अपनी तृष्णा शांत करने हेतु उनके पास आने लगे।
 
प्रमुख शिष्य : स्वामी रामानंदाचार्य जी के कुल 12 प्रमुख शिष्य थे: 1. संत अनंतानंद, 2. संत सुखानंद, 3. सुरासुरानंद , 4. नरहरीयानंद, 5. योगानंद, 6. पिपानंद, 7. संत कबीरदास, 8. संत सेजा न्हावी, 9. संत धन्ना, 10. संत रविदास, 11. पद्मावती और 12. संत सुरसरी।
 
संवत्‌ 1532 अर्थात सन्‌ 1476 में आद्य जगद्‍गुरु रामानंदाचार्य जी ने अपनी देह छोड़ दी। उनके देह त्याग के बाद से वैष्ण्व पंथियों में जगद्‍गुरु रामानंदाचार्य पद पर 'रामानंदाचार्य' की पदवी को आसीन किया जाने लगा।

जैसे शंकराचार्य एक उपाधि है, उसी तरह रामानंदाचार्य की गादी पर बैठने वाले को इसी उपाधि से विभूषित किया जाता है। दक्षिण भारत के लिए श्रीक्षेत्र नाणिज को वैष्णव पीठ रूप में घोषित कर इसका नाम 'जगद्‍गुरु रामानंदाचार्य पीठ, नणिजधाम' रखा गया है।
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Milan Tomic

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