जीवन मे आनंद पाना है तो स्वयं भी खुश रहे और औरों को भी खुशियां बांटे - Shrikrishna



प्रभू संकीर्तन - जीवन मे आनंद पाना है, तो स्वयं भी खुश रहे,और औरों को भी खुशियां बांटे।जीवन और म्रत्यु एक दूसरे के पूरक हैं।जीवन असत्य है, किन्तु म्रत्यु सत्य है।जब हम जीवन में खुश रहना चाहते हैं, तो म्रत्यु पर भी खुश ही रहना चाहिए।जीवन मे आए अनेक उत्सव की भांति म्रत्यु भी एक उत्सव है,।जिसने हमें जीवन दिया,हम उसका कितना धन्यवाद करते हैं फिर म्रत्यु होने पर हम क्यों न उसका धन्यवाद करें।म्रत्यु शास्वत सत्य है, और हमे सत्य के साथ ही जीना आना चाहिए।जब हम परमात्मा के चिंतन में रहते हैं, तो हमे परमानन्द प्राप्त होता है।उसी परम् आनंद से दूसरों में खुशियां बांटो।

सुन्दर कथा पढ़ें।

.............एक साधु  जीवनभर इतना प्रसन्न रहता था कि लोग हैरान थे। लोगों ने कभी उसे उदास नहीं देखा, कभी पीड़ित नहीं देखा।उसके शरीर छोड़ने का वक्त आया और उसने कहा कि अब मैं तीन दिन बाद मर जाऊंगा। उसने कहा जब मैं मर जाऊं, तो इस झोपड़े पर कोई उदासी न आए। 

यहां हमेशा आनंद था, यहां हमेशा खुशी थी। 

मेरी मौत को दुख मत बनाना, मेरी मौत को एक उत्सव बनाना।लोग बहुत दुखी हुए। वह तो अदभुत आदमी था। और जितना अदभुत आदमी हो, उतना उसके मरने का दुख  था। उसको प्रेम करने वाले बहुत थे, वे सब तीन दिन से इकट्ठे होने शुरू हो गए। 

वह मरते वक्त तक लोगों को हंसा रहा था, अदभुत बातें कह रहा था और उनसे प्रेम की बातें कर रहा था।

सुबह मरने के पहले उसने एक गीत गाया। गीत गाने के बाद उसने कहा, ‘स्मरण रहे, मेरे कपड़े मत उतारना। मेरी चिता पर मेरे पूरे शरीर को कपड़ों सहित चढ़ा देना । मुझे नहलाना मत।’

 वह मर गया। उस की इच्छा थी इसलिए उसे कपड़े सहित चिता पर चढ़ा दिया। 

वह जब कपड़े सहित चिता पर रखा गया, लोग उदास खड़े थे, लेकिन देखकर हैरान हुए। 

उसने  कपड़ों में फुलझड़ी और पटाखे छिपा रखे थे।

वे चिता पर चढ़े और फुलझड़ी और पटाखे छूटने शुरू हो गए। चिता उत्सव बन गयी। 

लोग हंसने लगे और उन्होंने कहा, ‘जिसने जिंदगी में हंसाया, वह मौत में भी हमको हंसाकर गया है।’खुशी वो अमृत है, जो दूसरों के पात्र में डालते समय स्वयं को भी महका देती हैं।(साभार:अज्ञात)जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।

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