निरन्तर भगवन्नाम जप से मन की शुद्धि होती है - ShriKrishna



प्रभु संकीर्तन - हमारे शास्त्रों में और अनेक सन्तो ने अपने अनुभव से हमे बताया है कि भगवन्नाम के निरंतर जप का मानव शरीर पर कितना अद्भुत प्रभाव होता है शब्द में बड़ी प्रबल शक्ति होती है निरन्तर भगवन्नाम जप से मन की शुद्धि होती है, विवेक जाग्रत होता है इससे हम अंदर से एक गुप्त दैवीय शक्ति का अनुभव करते हैं मानो हम अपने आराध्य से जुड़ रहे हैं यहीं से आशा, साहस, उत्साह और सफलता का आध्यात्मिक प्रवाह हमारे अंदर प्रवाहित होने लगता है; जिसके कारण हमारी चिन्ताएं, व्याकुलताएं, रोग-शोक और दुर्बलताएं नष्ट हो जाती हैं भगवन्नाम का आश्रय लेने से सांसारिक सुख - दु:ख व मान-अपमान का असर मन पर नहीं होता है यही आध्यात्मिक उन्नति धीरे-धीरे हमें स्वास्थ्य, सुख, शान्ति और संतुलन की ओर ले जाती है।

भगवन्नाम जप का मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव !! 

निरन्तर नाम-जप करने से भी मनुष्य का शरीर व मन कभी शांत नहीं होते, अवसाद चिन्ता उनसे कोसों दूर रहती है मन सदैव प्रफुल्लित रहता है, उनका ललाट एक अद्वितीय तेज से चमकता रहता है आवाज में गाम्भीर्य और मधुरता आ जाती है भगवान (इष्ट) के दिव्य गुण उनके जीवन में प्रवेश करने लगते हैं ।

जितना अधिक भगवन्नाम जप किया जायेगा उतना ही अधिक शरीर के परमाणु (cells) मन्त्राकार हो जाते हैं इस बात को भक्तों के जीवन-चरित्र का वर्णन करके सिद्ध किया जा सकता है।पढ़िए।दक्षिण भारत में एक ब्रह्मचैतन्य महाराज थे वे सबको ‘राम-नाम’ जपने का उपदेश करते थे  किसी ने उनसे पूछा—‘आपके और हमारे जप में क्या अंतर है ?’ 

उन्होंने कहा—‘तुम आज रात बारह बजे मेरे पास आना ।’ 

ब्रह्मचैतन्यजी रात्रि में बारह बजे भजन के लिए बैठते थे जब वह व्यक्ति ब्रह्मचैतन्य महाराज के पास आया तो उन्होंने उससे कहा—‘तुम मेरे अंगूठे से लेकर मस्तक तक कहीं भी कान लगाकर देखो जब उस व्यक्ति ने कान लगाकर सुना तो उनके रोम-रोम से ‘श्रीराम-श्रीराम’ की ध्वनि निकल रही थी यह है भगवान के अखण्ड नाम-जप की महिमा जो हमें ईश्वरत्व के समीप ले दाता है ।

भगवन्नाम जप का केवल मानव शरीर पर ही प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि वनस्पति जगत भी इससे प्रभावित होता है । तुलसीदासजी ने जब व्रजभूमि में प्रवास किया तो उन्होंने अनुभव किया कि व्रजभूमि में रहने वाले संत-भक्तों के सांनिध्य में वहां के वृक्ष व लताओं से भी ‘राधेश्याम’ की ध्वनि निकलती है।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।

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