कोलारस - रविवार की मध्य रात्रि होलिका दहन के साथ होली पर्व की शुरूवात हो जाती है होलिका दहन का पर्व रविवार की मध्य रात्रि मनाया जायेगा तथा रंग उत्सव सोमवार को मनाया जायेगा इसके दो दिन बाद बुधवार को भाई दौज का पर्व मनाया जायेगा पं. नवल किशोर भार्गव ने निर्णय सागर पंचाग जोकि मध्य भारत का मुख्य पंचाग माना जाता है उसके अनुसार होलिका दहन 25 मार्च की रात्रि 11ः14 बजे से प्रारम्भ होकर 12ः20 बजे के बीच होलिका दहन करना शुभ है इसके अगले दिन सोमवार को देश भर में रंग उत्सव का पर्व रंग गुलाल लगाकर एक दूसरे को होलिका दहन की शुभकामनाऐं दी जाती है मंगलवार को प्रतिपदा होने के कारण मंगलवार की जगह बुधवार को भाई दौज का पर्व बहने अपने भाई के माथे पर मंगल तिलक लगाकर भाई की लम्बी उम्र की कामना करती है तथा भाई से बहनें सुरक्षा का बचन लेती है इस बार होली का पर्व लोकसभा चुनावों के बीच मनाया जा रहा है बहने भाईयों से सुरक्षा के साथ - साथ पुलिस की कार्यवाही से बचने के लिये हेलमैट लगाने का भी बचन भाईयों से अवश्य लें।
निर्णय सागर पंचाग के मत अनुसार इस प्रकार मनाया जायेगा होली का पर्व -
दिं.24मार्च रविवार को होलिका दहन, दिं.25मार्च को दान पुण्य की पूर्णिमा, होली में दीपदान का मूहूर्त रात्रि 11 बजकर 14 मिनिट से 12 बजकर 20 मिनिट तक से (निर्णय सागर पंचाग नीमच अनुसार)
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमाको होता है इसका मुख्य सम्बन्ध होलीके दहनसे है जिस प्रकार श्रावणीको ऋषिपूजन, विजयादशमीको देवीपूजन और दीपावलीको लक्ष्मीपूजनके पीछे भोजन किया जाता है, उसी प्रकार होलिकाके व्रतवाले उसकी ज्वाला देखकर भोजन करते हैं होलिकाके दहनमें पूर्वविद्धा प्रदोषव्यापिनी पूर्णिमा ली जाती है यदि वह दो दिन प्रदोषव्यापिनी हो तो दूसरी लेनी चाहिये यदि प्रदोषमें भद्रा हो तो उसके मुखकी घड़ी त्यागकर प्रदोषमें दहन करना चाहिये भद्रामें होलिकादहन' करनेसे जनसमूहका नाश होता है प्रतिपदा, ६ चतुर्दशी, भद्रा और दिन - इनमें होली जलाना सर्वथा त्याज्य है कुयोगवश यदि जला दी जाय तो वहाँके राज्य, नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पातोंसे एक ही वर्षमें हीन हो जाते हैं यदि पहले दिन प्रदोषके समय भद्रा हो और दूसरे दिन सूर्यास्तसे पहले पूर्णिमा समाप्त होती हो तो भद्राके समाप्त होनेकी प्रतीक्षा करके सूर्योदय होनेसे पहले होलिकादहन करना चाहिये यदि पहले दिन प्रदोष न हो और हो तो भी रात्रिभर भद्रा रहे (सूर्योदय होनेसे पहले न उतरे) और
दूसरे दिन सूर्यास्तसे पहले ही पूर्णिमा समाप्त होती हो तो ऐसे अवसरमें पहले दिन भद्रा हो तो भी उसके पुच्छमें १-२ होलिकादीपन कर देना चाहिये। यदि पहले दिन रात्रिभर भद्रा रहे और दूसरे दिन प्रदोषके समय पूर्णिमाका उत्तरार्ध मौजूद भी हो तो भी उस समय
पूर्णिमाको होलिकादीपन करना चाहिये स्मरण रहे कि जिन स्थानोंमें माघ शुक्ल पूर्णिमाको 'होलिकारोपण' का कृत्य किया जाता है, वह उसी दिन करना चाहिये; क्योंकि वह भी होलीका ही अंग है। होली क्या है? क्यों जलायी जाती है? और इसमें पूजन किसका होता है? इसका आंशिक समाधानों
पूजाविधि और कथासारसे होता है होलीका उत्सव रहस्यपूर्ण है इसमें होली, ढुंढा, प्रह्लाद और स्मरशान्ति तो हैं ही; इसके सिवा इस दिन 'नवान्नेष्टि' यज्ञ भी सम्पन्न होता है इसी अनुरोधसे धर्मध्वज राजाओंके यहाँ माघी पूर्णिमाके प्रभातमें शूर, सामन्त और शिष्ट मनुष्य गाजे-बाजे और
लवाजमेसहित नगरसे बाहर वनमें जाकर शाखासहित वृक्ष लाते हैं और उसको गन्धादिसे पूजकर नगर या गाँवसे बाहर पश्चिम दिशामें आरोपित करके खड़ा कर देते हैं जनतामें यह 'होली', 'होलीदंड' (होलीका डाँडा) एवं 'प्रह्लादके नामसे प्रसिद्ध होता है; किंतु इसे 'नवान्नेष्टि' का यज्ञस्तम्भ माना जाय तो निरर्थक नहीं होगा' अस्तु, व्रतीको चाहिये कि वह फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमाको प्रातः स्नानादिके अनन्तर 'मम बालकबालिकादिभिः सह सुखशान्तिप्राप्त्यर्थं होलिकाव्रतं करिष्ये' से संकल्प करके काष्ठखण्डके खड्ग बनवाकर बच्चोंको दे और उनको उत्साही सैनिक बनाये वे निःशंक होकर खेल-कूद करें और परस्पर हँसें इसके अतिरिक्त होलिकाके दहन स्थानको जलके प्रोक्षणसे शुद्ध करके उसमें सूखा काष्ठ, सूखे उपले और सूखे काँटे आदि भलीभाँति स्थापित करे तत्पश्चात् सायंकालके समय हर्षोत्फुल्लमन होकर सम्पूर्ण पुरवासियों एवं गाजे-बाजे या लवाजमेके साथ होलीके समीप जाकर शुभासनपर पूर्व या उत्तरमुख होकर बैठे फिर 'मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (पुरग्रामस्थजनपदसहितस्यवा) सर्वापच्छान्तिपूर्वकसकलशुभ - फलप्राप्त्यर्थं ढुण्ढाप्रीतिकामनया होलिकापूजनं करिष्ये '- यह संकल्प करके पूर्णिमा प्राप्त होनेपर अछूत या सूतिकाके घरसे बालकोंद्वारा अग्नि मँगवाकर होलीको दीप्तिमान् करे और चैतन्य होनेपर गन्ध-पुष्पादिसे उसका पूजन करके 'असृक्पाभय- संत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः । अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव ॥' - इस मन्त्रसे तीन परिक्रमा या प्रार्थना करके अर्घ्य दे और लोकप्रसिद्ध होलीदण्ड (प्रह्लाद) या शास्त्रीय
यज्ञस्तम्भ' को शीतल जलसे अभिषिक्त करके उसे एकान्तमें रख दे। तत्पश्चात् घरसे लाये हुए खेड़ा, खाँडा और वरकूलिया आदिको डालकर होलीमें जौ-गेहूँकी बाल और चनेके होलोंको होलीकी ज्वालासे सेंके और यज्ञसिद्ध नवान्न तथा होलीकी अग्नि और यत्किंचित् भस्म लेकर घर आये। वहाँ आकर वासस्थानके प्रांगणमें गोबरसे चौका लगाकर अन्नादिका स्थापन करे। उस अवसरपर काष्ठके खड्गोंको स्पर्श करके बालकगण हास्यसहित शब्द करें ! उनका रात्रि आनेपर संरक्षण किया जाय और गुड़के बने हुए पक्वान्न उनको दिये जायें। इस प्रकार करनेसे ढुंढाके दोष शान्त हो जाते हैं और होलीके उत्सवसे व्यापक सुख-शान्ति होती है। कथाका सार यह है कि (१) उसी युगमें हिरण्यकशिपुकी बहिन, जो स्वयं आगसे नहीं जलती थी, अपने भाईके कहनेसे प्रह्लादको जलानेके लिये उसको गोदमें लेकर आगमें बैठ गयी; परंतु भगवान्की कृपासे ऐसा हुआ कि होली जल गयी; किंतु प्रह्लादको आँच भी नहीं लगी। उसके बदले हिरण्यकशिपु अवश्य मारा गया। (२) इसी अवसरपर नवीन धान्य (जौ, गेहूँ और चने) की खेतियाँ पककर तैयार हो गयीं और मानव-समाजमें उनके उपयोगमें लेनेका प्रयोजन भी उपस्थित हो आया; किंतु धर्मप्राण हिंदू यज्ञेश्वरको अर्पण किये बिना नवीनान्नको उपयोगमें नहीं ले सके, अतः फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमाको समिधास्वरूप उपले आदिका संचय करके उसमें यज्ञकी विधिसे अग्निका स्थापन, प्रतिष्ठा, प्रज्वालन और पूजन करके 'रक्षोघ्न०' सूक्तसे यव-गोधूमादिके चरुस्वरूप बालोंकी आहुति दी और हुतशेष धान्यको घर लाकर प्रतिष्ठित किया। उसीसे प्राणोंका पोषण होकर प्रायः सभी प्राणी हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ हुए और होलीके रूपमें 'नवान्नेष्टि' यज्ञको सम्पन्न किया।
दिं. 26मार्च मंगलवार
गौरीव्रत (व्रतविज्ञान) - यह चैत्र कृष्ण प्रतिपदासे
चैत्र शुक्ल द्वितीयातक किया जाता है। इसको विवाहिता और कुमारी दोनों प्रकारकी स्त्रियाँ करती हैं। इसके लिये होलीकी भस्म और काली मिट्टी-इनके मिश्रणसे गौरीकी मूर्ति बनायी जाती है और प्रतिदिन प्रातःकालके समय समीपके पुष्पोद्यानसे फल, पुष्प, दूर्वा और जलपूर्ण कलश लाकर उसको गीत-मन्त्रोंसे पूजती हैं। यह व्रत विशेषकर अहिवातकी रक्षा और पतिप्रेमकी वृद्धिके निमित्त किया जाता है।
दिं.26मार्च मंगलवार को
(२) होलामहोत्सव (पुराणसमुच्चय-मुक्तकसंग्रह) - यह उत्सव होलीके दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदाको होता है। लोकप्रसिद्धिमें
इसे रंग, गुलाल, गोष्ठी, परिहास और गायन-वादनये और देहातीलोग धूल-धमासा, जलक्रीडा और धमाल आदिये सम्पन्न करते हैं। आजकल इथ उत्सवका रूप बहुत विकृत और उच्छृंखलतापूर्ण ही गया है। लोगोंको सभ्यताके साथ भगवद्भावये भरे हुए, गीत आदि गाकर यह उत्सव मनाना चाहिये। इस उत्सबके चार उद्देश्य प्रतीत होते हैं- (१) जनता जानती है कि होलीके जलानेमें प्रह्लादके निरापद निकल जानेके हर्षमें यह उत्सव सम्पन्न होता है। (२) शास्त्रोंमें इस दिन इसी रूपमें 'नवान्नेष्टि' यज्ञ घोषित किया गया है, अतः नवप्राप्त नवान्नके सम्मानार्थ यह उत्सव किया जाता है। (३) यज्ञकी समाप्तिमें भस्मवन्दन और अभिषेक किया जाता है, किंतु ये दोनों कृत्य विशेषकर कुत्सित रूपमें होते हैं। (४) वैसे माघ शुक्ल पंचमीसे चैत्रशुक्ल पंचमीपर्यन्तका वसन्तोत्सव स्वतः होता ही
दिं.27मार्च बुधवार
चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया को भाई दोज टीका क्षेत्रिय प्रचलन के अनुसार मनाया जाता हेमाद्रि
१२ राशियो का राशिफल
मेष राशि
- सुखद समाचार प्राप्ति, पारिवारिक सुख, कुटुम्ब में एकता, मित्र सहयोग, व्यापार लाभ।
बृष राशि
भाग्य उदय, व्यापार सम, स्त्री कष्ट, मित्रों से सहयोग, न्यायिक कार्यों में विशेष सफलता।
मिथुन राशि
-निर्माण कार्य पर व्यय, वाहन संबंधी सुख, शत्रु भय, स्वास्थ्य में गिरावट, स्थानांतरण योग।
कर्क राशि
-मानसिक व्यग्रता, व्यापार अधिक, स्त्री कष्ट, स्वास्थ्य लाभ, पारिवारिक मामलों व्यस्तता।
सिंह राशि.
संतान पक्ष से सुख, विद्या संबंधी, कार्यों से लाभ, धार्मिक अनुष्ठान, स्वास्थ्य लाभ, पदोन्नति।
कन्या राशि
- श्रमअधिक, व्यर्थ के कार्य से नुकसान, यात्रा से हानि, धन का अधिक खर्च, शत्रुभय।
तुला राशि -
जायदाद वृद्धि, धन संबंधी कार्य में सफलता, माता से सुख प्राप्त, मित्रों से संबंध अच्छे।
वृश्चिक राशि
- कार्य में पदोन्नति, स्थानान्तरण से लाभ, जमीन जायदाद की वृद्धि, वाहन के कष्ट, शत्रुभय।
धनु राशि
- सुखद समाचार, कार्य में सफलता, पारिवारिक कलह, उदर विकार, नेत्र संबंधी समस्या।
मकर राशि
-अचानक लाभ, भवन संबंधी कार्य संभव, विद्या प्राप्त, मांगलिक कार्य, स्त्री पक्ष से लाभ।
कुंभराशि
-शत्रु पक्ष कमजोर, सुखद समाचार, भूमि वाहन से लाभ, निर्माण कार्य संभव, मांगलिक कार्य।
मीन राशि
उच्च शिक्षा प्राप्त, वाहन सुख, भूमि निर्माण कार्य संभव, स्थानांतरण, पदोन्नति, यात्रा व्यय।
पं. नवल किशोर भार्गव
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