ग्वालियर-चंबल अंचल की इन सीटों पर प्रत्याशी नहीं खोज पाई कांग्रेस, यहां फंसा पेंच, ये दावेदार - Shivpuri



शिवपुरी - ग्वालियर-चंबल अंचल की संसदीय क्षेत्र में लोकसभा का मतदान सात मई को होना है। लेकिन एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ने न केवल अपनी पार्टी के प्रत्याशी के नाम का एलान कर दिया है। वहीं, उसका प्रचार अभियान भी शुरू हो गया है। वहीं, कांग्रेस में अभी प्रत्याशी का नाम भी घोषित नहीं हो पाया है। कांग्रेस की सीईसी यानी केन्द्रीय निर्वाचन कमेटी की लगातार दिल्ली में बैठक हो रही है। सूत्रों की मानें तो नाम अभी तक राज्य के नेता फाइनल ही नहीं कर सके हैं, उनके बीच उठापटक जारी है।

ग्वालियर-चंबल अंचल की तीन लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस लगातार टिकटों को लेकर मंथन कर रही है। लेकिन इसके बावजूद भी उम्मीदवार का एक नाम फाइनल नहीं हो पा रहा है।कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल अंचल की चार लोकसभा सीटों में से सिर्फ भिंड और दतिया लोकसभा सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। वहीं, ग्वालियर, मुरैना और गुना लोकसभा सीट पर अभी भी पेंच फंसा है। ग्वालियर संसदीय सीट पर बीते चार बार से कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ रहा है। इसके बावजूद ग्वालियर सीट प्रदेश की उन चुनिंदा सीट में से एक है, जिस पर कांग्रेस में टिकट को लेकर मारामारी है और बड़ी संख्या में नेता अपनी दावेदारी कर रहे हैं।
इसकी दो खास वजह हैं। एक तो यह कि बीते चार चुनावों के परिणाम देखें तो नतीजे बताते हैं कि यह सीट कांग्रेस जीत भले ही नहीं पाई हो। लेकिन उसने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। बीते-बीते चार चुनावों में से तीन में भाजपा ने यहां से अपने दिग्गज नेताओं यानी यशोधरा राजे सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर को उतारा। लेकिन उनके जीत का मार्जिन महज 26 हजार से 36 हजार के बीच रहा। साल 2019 में भी जब मोदी लहर के चलते प्रदेश की ज्यादातर सीटों पर भाजपा उम्मीदवार तीन से छह लाख मतों के अन्तर से जीते। ऐसे में ग्वालियर सीट पर भाजपा की जीत डेढ़ लाख ही रही। यही वजह है कि कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि इस बार वे इस सीट को जीत सकते हैं।

ग्वालियर सीट के लिए वैसे तो दावेदारों की लंबी लिस्ट है। पूर्व सांसद रामसेवक सिंह बाबूजी और पूर्व विधायक प्रवीण पाठक के अलावा पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव, युवा कांग्रेस नेता मितेन्द्र सिंह, विधायक डॉ. सतीश सिकरवार हैं। लेकिन माना जा रहा है कि सीईसी में जिन दो नामों पर गम्भीरता से विचार होना है, उनमें सबसे पहला नाम रामसेवक सिंह बाबूजी का है। वे साल 2003 में यहां से कांग्रेस सांसद बने थे। लेकिन सवाल के बदले पैसे लेने के एक मीडिया द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन में फंसने के चलते उन्हें अपनी सांसदी गंवानी पड़ी थी। दूसरे बड़े दावेदार हाल ही में विधानसभा चुनाव हार गए, विधायक प्रवीण पाठक हैं। इसकी वजह उनकी युवा और आक्रामक तेवर होने के साथ ही क्षेत्र में ब्राह्मणों के दो से ढाई लाख वोटों का होना है।

वहीं, ऐसे ही हालत मुरैना लोकसभा सीट पर हैं। मुरैना लोकसभा सीट पर बीजेपी ने उम्मीदवार के रूप में दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके शिवमंगल सिंह तोमर को मैदान में उतारा है। शिवमंगल सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के कट्टर समर्थक हैं। अब सीट पर कांग्रेस जातिगत समीकरण को बैठाने के लिए प्रत्याशियों पर मंथन कर रही है। कांग्रेस पार्टी जातिगत समीकरण को साधने के लिए टिकट पर मंथन कर रही है, जिसमें सबसे पहला नाम बीजेपी पार्टी से निष्कासित हुए पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार का आ रहा है। क्योंकि कांग्रेस पार्टी मुरैना लोकसभा सीट में सबसे प्रबल दावेदार के रूप में सत्यपाल सिंह सिकरवार को ही मान रही है। वहीं, दूसरा नाम जौरा विधानसभा से कांग्रेस के विधायक पंकज शर्मा का है। इसके अलावा ओबीसी उम्मीदवार के रूप में चंबल के सबसे बड़े उद्योग व्यापारी रमेश गर्ग सामने आ रहे हैं।

बीजेपी कांग्रेस के टिकटों को लेकर तंज कस रही है। बीजेपी के सांसद विवेक नारायण शेजवालकर का कहना है कि कांग्रेस अब इस स्थिति में नहीं है कि वह बीजेपी का मुकाबला कर सके। उनके पास उम्मीदवारों का टोटा है और यही कारण है कि वह तय नहीं कर पा रहे  हैं कि किसको टिकट दें और किसको नहीं। बाकी कोई उम्मीदवार नहीं है, जो भाजपा का मुकाबला कर सके। वहीं, ग्वालियर-चंबल अंचल में विधानसभा और नगर निगम में हमें सफलता हासिल हुई। इससे स्पष्ट होता है कि हम यहां पर मजबूत हैं और एक दो दिन के अंदर कांग्रेस की पूरी सूची आ जाएगी। इसमें मुरैना और ग्वालियर लोकसभा की उम्मीदवारों के भी नाम होंगे। उम्मीद है कि इस ग्वालियर-चंबल अंचल में हम लोकसभा सीटें जीतने में सफल होंगे।

बहरहाल, ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस को उम्मीद इसलिए है। क्योंकि अभी हाल में ही 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का आंकड़ा ज्यादा कम नहीं हुआ है। क्योंकि कांग्रेस ने 34 विधानसभा सीटों में से 16 सीट पर जीती है। इसलिए पार्टी को उम्मीद है कि अगर वह जातिगत समीकरण और एक मजबूत प्रत्याशी बीजेपी के सामने उतार देती है तो शायद उनको यहां संजीवनी मिल सकती है।

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