ताक़त और पैसा ज़िन्दगी के फल हैं जबकि परिवार और मित्र जिन्दगी की जड़ हैं



ताक़त और पैसा ज़िन्दगी के फल हैं जबकि परिवार और मित्र जिन्दगी की जड़ हैं हम फल के बिना अपने आप को चला सकते हैं लेकिन जड़ के बिना खड़े भी नहीं हो सकते है,सब को सम्मान देना एक निवेश जैसा होता है जो हमेशा चक्रवृध्दि ब्याज के साथ वापस मिलता है,संसार का सबसे बड़ा,न्यायालय हमारे मन में है,इस मन को सब पता है,क्या सही है और,क्या गलत है,आईना कुछ नहीं नज़र का धोखा है,नज़र वही आता हैं जो दिल में होता है,आपकी अच्छाई एक ऐसी ज्वाला है जो छुप तो सकती है,पर कभी बुझ नहीं सकती,मन बड़ा चमत्कारी शब्द है,सके आगे न लगाने पर,यह नमन हो जाता है,और पीछे न लगाने पर,मनन हो जाता है,जीवन में नमन और मनन करते चलिए,जीवन सफल ही नहीं,सार्थक भी हो जायेगा, समस्याओं  का समाधान एक, मुस्कुराहट,से हो सकता है,नजरअंदाज कीजिए,उन लोगों को और उन बातों को,जो आपको परेशान करते हैं,

आप चाह कर भी अपने प्रति लोगों की धारणा को कभी नहीं बदल सकते इसलिए सुकून से अपनी जिंदगी जिए और प्रसन्न रहें,दूसरों की बातें सुनकर अपने रिश्ते खराब मत कीजिए क्योंकि रिश्ते अपने होते हैं दूसरों के नहीं,जिंदगी में जो हम चाहते है वो आसानी से नहीं मिलता लेकिन जिंदगी का सच ये है कि हम भी वही चाहते है जो आसान नहीं होता,परेशानी में जो अनुभव और सीख मिलती है वो सीख दुनिया का कोई भी स्कूल नहीं दे सकता है,कुछ रास्तों पर आपको अकेले ही चलना पड़ता है ना परिवार ना दोस्त और ना साथी बस आप और आपकी हिम्मत,जिंदगी में कभी बुरे दिन से सामना हो जाए तो इतना याद रखना कि दिन बुरा हो सकता है आपका जीवन नहीं,!

महानता का शुभारंभ  से होता है,बाह्य से नहीं अंतर को महान बनाए बिना वास्तविक रूप में कोई महान नहीं बन सकता यदि कोई अधो अंतर वाला संयोग चातुर्य अथवा परिस्थितियों द्वारा किसी उच्च पदवी और प्रतिष्ठा पर पहुँच भी जाता है तो बहुत दिन तक वह अपने उस ऐश्वर्य को सुरक्षित नहीं रख सकता उसकी आंतरिक विकृतियां उसे निकृष्ट कार्य और विचार जाल में फंसाकर शीघ्र ही धूल में गिरा देती है महानता का आधार अंतर है,बाह्य परिस्थितियां नहीं महानता के  वास्तव में ऐसे फल हैं,जो अंतर की डाली पर लगा करते हैं। यदि आंतरिक डाली मजबूत और उपयुक्त नहीं है तो निश्चय ही उस पर लग जाने वाले महानता के फल स्वयं तो नष्ट हो ही जाएंगे व्यक्ति का अस्तित्व भी उसी प्रकार नष्ट कर देंगे जैसे फलों के भार से वृक्ष की कमजोर डाली फट पड़ती है और शीघ्र ईंधन बनकर स्वाहा हो जाती है 

अगर किसी क़ो पानी लाने भेजो तो वो खुद पहले पीते हैl ऐ जिंदगी है जनाब यहां हर कोई पहले अपने लिए जीता है पहले दूसरा का हक हो ऐसा ना आप सोचे होंगे ना हम फिर भी हम अनुभव अवश्य करते है,कुदरत ने ही तो पहचान करके इंसान बना के भेज दिया है तो उस इन्सानियत की पहचान क़ो भूलकर हम इंसान अपनी पहचान बनाने में समय क़ो बर्बाद करते जा रहे है फिर कहते है, भाग्य साथ नहीं देता समय साथ नहीं देता बाह माया का खेल

दुनिया में केवल शक्ति सम्पन्न होने मात्र से ही कोई भी पूज्यनीय और वन्दनीय नहीं बन जाता है अपितु उस शक्ति का सही प्रयोग और समय पर प्रयोग करने वालों को ही युगों - युगों तक स्मरण रखा जाता है। केवल सामर्थ्यवान होना पर्याप्त नहीं है अपितु उस सामर्थ्य को लोक मंगल एवं लोक कल्याण में लगाना ही जीवन की परम श्रेष्ठता एवं सार्थकता है,अथाह शक्ति सम्पन्न होने पर भी माँ दुर्गा ने अपनी सामर्थ्य का प्रयोग कभी भी किसी निर्दोष को दण्डित करने हेतु नहीं किया बल्कि केवल और केवल आसुरी वृत्तियों के नाश के लिए ही किया।शक्ति का गलत दिशा में प्रयोग ही तो पाप है,साधन शक्ति सम्पन्न हो जाने पर कायर बनकर चुप बैठ जाना यह भी एक प्रकार से असुरत्व को बढ़ाने जैसा ही है अपनी समस्त शक्ति व साधनों को मानवता की रक्षा में लगाने की प्रेरणा हमें माँ जग जननी भगवती से लेनी होगी, 

सुखी व्यक्ति परिस्थितियों के अनुसार ढला हुआ नही होता है बल्कि उसके जीवन जीने का दृष्टि कोण और नजरिया अलग होता है छोटी छोटी खुशियाँ ही तो जीने का सहारा बनती है ख्वाहिशों का क्या वो तो पल पल बदलती है जो जितना तुम्हारा है तुम भी उसके उतने ही रहो ज्यादा दिल की गुलामी में इज्जत की नीलामी हो जाती है,हवा में ताश का महल नहीं बनता रोने से बिगड़ा मुकद्दर नहीं बनता दुनिया जीतने का हौसला रख ऐ दोस्त एक जीत से कोई सिकंदर नहीं बनता दुःख कितना भी बड़ा क्यों ना हो धैर्य और संतुलन रखिये                                                                                                                                                                                                 समय आपको हारने नही देगा  समय कब बदल जाए कोई नहीं कह सकता भाग्य कब साथ छोड़ दे कोई नहीं जान सकता इसलिए समय और भाग्य पर कभी अहंकार नहीं करना चाहिए दोस्तों ज़िंदगी के सारे तजुर्बे किताबो मे नही मिलते रूबरू होना पड़ता है जमाने से इन्हे पाने के लिए

जय श्री हरि,कर ले हरि से प्यार,नही तो पछताएगा,झूठा है संसार,धोखा खाएगा माया के जितने धन्धे,सब झूठे है बंदे,उनके तन उजले मन गंदे,अँखियो से बिल्कुल अंधे,नज़र क्या आएगा,मात-पिता सुत नारी,मतलब की रिस्तेदारी,जब चलेगी तेरी सवारी,रह जाएगी दौलत सारी,संग नही जाएगा,ले मान गुरू का कहना,दिन चार यहा पर रहना,सुख दुःख सबको सहना,पर हरि भजनो मे रहना,काम ये आएगा बंन्दे खुश रहा करो,जय श्री हरि

आपने यह जानना चाहा है कि भगवान और गुरु में क्या अंतर है सबसे बड़ा अंतर है कि भगवान ने ही गुरु को बनाया है या आप इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि ईश्वर ने ही गुरु की रचना की है हम सीधे कभी भी ईश्वर से नहीं मिल सकते हैं केवल सद्गुरु ही हमें ईश्वर से मिला सकता है,श्री रघुनाथ जी जो अत्यन्त ही कृपालु हैं और जिनका दीनों पर सदा प्रेम रहता है उनसे उस अवगुणों के घर मूर्ख जयन्त ने आकर छल किया ।

प्यार देने से बेटा बिगड़े,भेद देने से नारी,लोभ देने से नौकर बिगड़े,धोखा देने से यारी,घर को आबाद या बर्बाद करने के लिए घर का एक सदस्य ही काफी होता है,संसार में व्यक्ति को सबसे ज्यादा विचलित और व्यग्र कोई चीज करती है तो वो है,उसके स्वयं के विचार,इसलिए फलदार पेड़ और गुणवान व्यक्ति ही झुकते हैं सुखा पेड़ और मूर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते,क्योंकि कदर किरदार की होती है वरना कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है,नैन मनोहर महा मोदकर सुन्दर वरतर श्री वृंदा बिपिन बिहारी जी की अनमोल कृपा से आप श्री मोर मुकुटधर प्रभु के लीला चरित्रों का नित्य मनन सुमिरन करते रहें,छाता बारिश नहीं रोक सकता,परन्तु बारिश में खड़े रहने का,हौंसला अवश्य देता है,उसी तरह आत्मविश्वास,सफलता की गारन्टी तो नहीं,परन्तु सफलता के लिए,संघर्ष करने की प्रेरणा,अवश्य देता है,_

मुझे हर हाल में दुख ही मिलता है कैसे क्या करूं,यह आपकी परमात्मा में विश्वास की कमी का नतीजा है कि हर हाल में आपको दुःख दिखाई देता है यानी मेरे साथ ही बुरा क्यों होता है या पता नहीं क्यों हमारे साथ तो भगवान भी सब उल्टा ही करता है दृष्टि दोष है जैसे नेत्र रोगी को दृश्य साफ दिखाई नही देता ठीक ऐसे ही जिसका नजरिया खराब है उसे नजारे खराब दिखाई देते है,सच्चाई यह है कि जिस व्यक्ति को यह विश्वास होता है कि ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है अतः परमात्मा मेरे साथ सब अच्छा ही करता है उसको फिर हर घटना हर बात में से अच्छाई फायदा दिखाई देना भी शुरू कर देता है दुख का कारण है कि व्यक्ति को परमात्मा पर विश्वास की कमी है कि वो प्राप्त सुखों में से भी दुख खोजता रहता है।

पिता द्वारा ताड़ित भाव अनुशासन के मूल्य सिखाए जाने से है पुत्र, ग्रुरु द्वारा शिक्षित शिष्य और हथौड़े से टीपा गया स्वर्ण, सभी व्यक्तियों के मध्य आभूषण रुप बनता है  बच्चों को अच्छे संस्कार दें अपने धर्म की रक्षा करें,

 

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