कोलारस - करवा चौथ वृत 20 अक्टूबर रविवार को करवा चतुर्थी व्रत हे चंद्रोदय रात्रि 08,18पर है (२) करकचतुर्थी (करवाचौथ) (वामनपुराण) यह व्रत कार्तिक कृष्णकी चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थीको किया जाता है यदि वह दो दिन चन्द्रोदयव्यापिनी हो या दोनों ही दिन न हो तो 'मातृविद्धा प्रशस्यते' के अनुसार पूर्वविद्धा लेना चाहिये।
इस व्रतमें शिव- शिवा, स्वामिकार्तिक और चन्द्रमाका पूजन करना चाहिये और नैवेद्यमें (काली मिट्टीके कच्चे करवेमें चीनीकी चासनी डालकर बनाये हुए) करवे या घीमें सेंके हुए और खाँड मिले हुए आटेके लड्डू अर्पण करने चाहिये। इस व्रतको विशेषकर सौभाग्यवती स्त्रियाँ अथवा उसी वर्षमें विवाही हुई लड़िकयाँ करती हैं और नैवेद्यके १३ करवे या लड्डू और १ लोटा, १ वस्त्र और १ विशेष करवा पतिके माता-पिताको देती हैं। व्रतीको चाहिये कि उस दिन प्रातः स्नानादि नित्यकर्म करके 'मम सुख सौभाग्य- पुत्रपौत्रादिसुस्थिरश्रीप्राप्तये करकचतुर्थीव्रतमहं करिष्ये।' यह संकल्प करके बालू (सफेद मिट्टी) की वेदीपर पीपलका वृक्ष लिखे और उसके नीचे शिव-शिवा और षण्मुखको मूर्ति अथवा चित्र स्थापन करके 'नमः शिवायै शर्वाण्ये सौभाग्यं संततिं शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीर्णा हरवल्ल भे ॥' से शिवा (पार्वती) का षोडशोपचार पूजन करे और 'नमः शिवाय' से शिव तथा 'षण्मुखाय नमः' से स्वामिकार्तिकका
पूजन करके नैवेद्यका पक्वान्न (करवे) और दक्षिणा ब्राह्मणको देकर चन्द्रमाको अर्घ्य दे और फिर भोजन करे। इसकी कथाका सार यह है कि-'शाकप्रस्थपुरके वेदधर्मा ब्राह्मणकी विवाहिता पुत्री वीरवतीने करकचतुर्थीका व्रत किया था। नियम यह था कि चन्द्रोदयके बाद भोजन करे। परंतु उससे भूख नहीं सही गयी और वह व्याकुल हो गयी। तब उसके भाईने पीपलकी आड़में महताब (आतिशबाजी) काश फैलाकर चन्द्रोदय दिखा दिया और वीरवतीको आदिका सुन्दर प्रकाश भोजन करवा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अलक्षित हो गया और वीरवतीने बारह महीनेतक प्रत्येक चतुर्थीका व्रत किया तब पुनः प्राप्त हुआ।
🙏🏻जयश्रीमन्नारायण 🙏🏻
पं. नवल किशोर भार्गव
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