पुरुषार्थ सिद्धि मानव जीवन का परम उद्देश्य - मुनि मंगलसागर महाराज - Kolaras


कोलारस - मुनि मंगलसागर महाराज ने अपने प्रवचनों में कहाँ कि भाग्य और पुरुषार्थ दो ऐसे शब्द है जो व्यक्ति के जीवन को बदल देते है पुरुषार्थ का अर्थ परिश्रम या मेहनत से है जो व्यक्ति अपने जीवन मे परिश्रम करता है वह अपने जीवन की हर ऊचाइयों को प्राप्त करता है पुरुषार्थ मनुष्य जीवन के प्रयोजन की सिद्धि जिनके द्वारा होती है उसे पुरुषार्थ कहाँ जाता है पुरुषार्थ चार होते है जिनमें धर्म, अर्थ' काम और मोक्ष यह मनुष्य शरीर सभी योनियों में इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि इनकी सिद्धि इसी शरीर से ही सम्भव है धर्म, अर्थ, काम, पुरुषार्थ तो प्रायः सभी दर्शन स्वीकार करते है क्यो कि वे चतुर्थ की सिद्धि तीन ही मानते है मुनि ने कहाँ जैन धर्म में किसी व्यक्ति के भाग्य में ईश्वर की कोई भूमिका नही होती बल्कि किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत भाग्य को किसी पुरस्कार या दंड की व्यवस्था के परिणाम के रूप में नही देखा जाता बल्कि उसके अपने व्यक्तिगत कर्म के परिणाम के रूप में देखा जाता है भाग्योदय शब्द में भाग्य को प्रधानता दी जाती है स्वंभ को नही जबकि पुरुषार्थ में स्वम को प्रधानता दी जाती है इसलिए भाग्योदय पुरुषार्थ से स्वतन्त्र तत्व है।

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