प्रभु संकीर्तन - भक्तवत्सल भगवान के जितने भी अवतार है, सभी सुख के सागर है उनके नाम, रूप और लीलाओं का कोई आरम्भ और अंत नही है क्योंकि परमात्मा अनन्त है हमारा मन भगवान के जिस भी रूप में लग जाये,उसी रूप में रम जाता हे और उसी रूप से सम्बंधित प्रेम भाव जग जाता है परमात्मा के सभी रूप अनन्त सुख के सागर है जितनी हमारी भक्ति की तीव्र इच्छा होगी, परमात्मा से उतनी शीघ्रता से हम जुड़ जाएंगे भक्त इस जुड़ाव से इतना आनंदित होता है कि उसे उस जुड़ाव के आगे संसार के समस्त सुख तुच्छ लगने लगते है इस जुड़ाव से हम परमात्मा के गहन रहस्यों से जुड़ने लगते है भगवान के सभी अवतार भक्तों को सुख देने वाले है।भगवान ने सभी अवतार अपने भक्तों के कल्याण के लिए लिए थे।अपने भक्तों पर भगवान की अपार किरपा होती है अपने भक्तों के कष्ट हरकर उन्हें सुख देने भगवान स्वयं आते है पढिये कथारूद्वारिकापुरी के समीप रामदास नाम के एक भक्त थे।वे प्रत्येक एकादशी को रणछोड़ मंदिर में जागरण कीर्तन करते थे।जब इनका शरीर दुर्लभ हो गया तो भगवान ने इन्हें आज्ञा दी कि अब एकादशी का जागरण अपने घर पर किया करो किन्तु भक्ति भावना के कारण रामदास ने भगवान की बात नही मानी भक्त की दृढ़ भक्ति देखकर भगवान बोले राम दास अब तुम्हे यहां आने की जरूरत नही है, इसलिए अब मैं तुम्हारे घर चलूंगा, अगली एकादशी को तुम गाड़ी लेकर आना और उसे मंदिर के पीछे खिड़की के पास खड़ी कर देना मैं खिड़की खोल दूंगा,तुम मुझे गोद मे भरकर गाड़ी में पधराकर शीघ्र चल देना भक्त राम दास ने वैसा ही किया।सभी लोगो ने समझा व्रद्ध होने के कारण राम दास गाड़ी में आया है इधर मंदिर में भगवान का आसन सुना देख, पुजारी ने रामदास की शिकायत पुलिस को कर दी पुलिस ने राम दास को बहुत मारा पीटा,भगवान बोले तुमने मेरे भक्त को बहुत मारा पीटा है, यह सारे निशान मेरे शरीर पर इसीलिए पड़े है अब मैं वापस मंदिर नही जाऊंगा ऐसे भक्त वत्सल है, भगवान।जय जय श्री राधेकृष्ण जी श्री हरि आपका कल्याण करें।