निस्वार्थ सेवा,सतसंग और अपने ईस्ट की साधन से ही मनुष्य निर्विकार हो सकता है...मां कनकेश्वरी देवी - Kolaras

एक भूल मनुष्य को 84 लाख योनियों में भटका सकती है

सुद्ध तो अशुद्ध हो सकता है किंतु बिसुद्ध कभी अशुद्ध नही हो सकता

अध्यात्म सुख हमेशा पूर्ण मिलता है किंतु सांसारिक सुख हमेशा अपूर्ण 

विवेक व्यास, रोहित वैष्णव कोलारस - मनुष्य की एक भूल साधना के मार्ग से उसे भटका सकती है और उसे 84 लाख योनियों में भटकने पर मजबूर कर देती है।

मनुष्य मूल से शुद्ध होकर ही इस धरती पर परमात्मा द्वारा भेजा जाता है किंतु वह तीन कारण से विकारी हो जाता है पहले प्रारब्ध से दूसरा कुसंग से तीसरा धातु अर्थात माता पिता के कर्मों के प्रभाव से। 

कुसंग से पीड़ित कुछ समय के सत्संग से ही शुद्ध हो जाता है धातु के प्रभाव से विकारी के लिए थोड़ा अधिक सत्संग करना होता है किंतु प्रारव्ध के प्रभाव से विकारी मनुष्य को पूरे जन्म तक सत्संग करना पड़ता है तो वह साधना के योग्य हो जाता है। जिस प्रकार जल की बूंद आकाश से निर्मल होकर आती है किंतु इस धरती पर आकर वह असुद्ध हो जाती है उसी तरह जब जीव जन्म लेता है तो वह शुद्ध होता है सांसारिक माया मोह में आकर वह भटक जाता है इन सबसे बचने के लिए और साधना को प्रगाढ़ करने के लिए मनुष्य को निस्वार्थ सेवा,सतत सत्संग और अपने गुरु और ईस्ट की पूर्ण मनोयोग से आराधना करनी चाइए।

Post a Comment

Previous Post Next Post

संपर्क फ़ॉर्म