देव उठान, तुलसी विवाह के साथ मंगलवार से मांगलिक कार्यक्रम होंगे प्रारम्भ - पं. नवल किशोर भार्गव - Kolaras



मंगलवार देवउठानी आशादशमी एकादशी किए जाने वाले व्रत अथवा आज से प्रारंभ किए जाने वाले व्रत

1 आशादशमी, 2आरोग्यव्रत, 3राज्य प्राप्ती व्रत,४ब्रह्म प्राप्ती  व्रत5सार्वभौम व्रत 

इनमे से एक कोई भी व्रत वर्ष पर्यंत किया जाता नीचे पढे

आशादशमी (भविष्योत्तर) - धन, राज्य, खेती, वाणिज्य या पुत्रादि प्राप्त होनेकी आशा पूर्ण होनेके लिये कार्तिक शुक्ल दशमी (या किसी भी शुक्ल दशमी) को स्नान करके शुद्ध स्थानमें जौके चूर्णसे सायुध और स्वस्वरूपयुक्त इन्द्रादि दिक्पालोंको लिखकर उनका पूजन करे। गन्ध-पुष्पादि चढ़ाये। घीसे भलीभाँति भीगा हुआ भोजन और कालजात (उस ऋतुके) फल अर्पण करे। दीपक जलाये और 'आशाः स्वाशाः सदा सन्तु सिद्ध्यन्तां मे मनोरथाः । भवतीनां प्रसादेन सदा कल्याणमस्त्विति ।।' से प्रार्थना करे। इस प्रकार वर्षपर्यन्त करे तो धनार्थी, पुत्रार्थी, सुखार्थी, राज्यार्थी या अन्य कामार्थी आदिकी धन, पुत्र, सुख, राज्य और काम आदिकी आशा सफल हो जाती है। (१३) आरोग्यव्रत (गरुडपुराण) - कार्तिक शुक्ल नवमी (या किसी भी शुक्ल नवमी) को उपवास करे। दशमीको स्नान करके हरिका ध्यान करे। फल, पुष्प और मधुरान्न-पानादिका भोग लगावे। साथ ही चक्र, गदा, मूसल, धनुष और खड्ग-इन आयुधोंका लाल पुष्पोंसे पूजन करके गुडान्नका नैवेद्य अर्पण करे। इसके अतिरिक्त अजिन (मृगचर्म)-पर द्रोणपरिमित तिलोंका कमल बनाकर उसपर सुवर्णका अथवा अच्छे वर्णका अष्टदल स्थापित करके उसकी प्रत्येक पँखुड़ीपर पूर्वादिक्रमसे मन, श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, जिह्वा, घ्राण, प्राण और बुद्धि - इनका पूजन करके 'अनामयानीन्द्रियाणि प्राणश्च चिरसंस्थितः । अनाकुला च मे बुद्धिः सर्वे स्युर्निरुपद्रवाः।। मनसा कर्मणा वाचा मया जन्मनि जन्मनि। संचितं क्षपयत्वेनः कालात्मा भगवान् हरिः ।।' से इनकी प्रार्थना करे तो रोगी नीरोग और सदैव सुस्वस्थ रहता है।

(१४) राज्यप्राप्तिव्रत (विष्णुधर्मोत्तर) - इस व्रतके निमित्त

१-क्रतु (यज्ञ), २-दक्ष, ३-वसु, ४-सत्य, ५-काल, ६-काम, ७-मुनि, ८-कुरुवान्मनुज, ९-परशुराम और १०-विश्वेदेव- इनका गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और अन्नादिसे पूजन करके 'पारणान्ते' (व्रतके अन्तमें) सुवर्णादि सामग्री ब्राह्मणको दे। यह व्रत कार्तिक शुक्ल दशमीसे आरम्भ किया जाता है और उपर्युक्त क्रतु-दक्षादि दस देव केशवके आत्मा हैं, अतः इनके अर्चनसे अवश्य ही राज्यलाभ होता है।

(१५) ब्रह्मप्राप्ति-व्रत (विष्णुधर्मोत्तर) - कार्तिक शुक्ल दशमी (या किसी भी शुक्ल दशमी) को १-आत्मा, २-आयु, ३-मन, ४-दक्ष, ५-मद, ६-प्राण, ७-हविष्मान् ८-गविष्ठ (स्वर्गस्थ),

 ९-दत्त और १०-सत्य-इनका तथा अंगिरसका यथाविधि पूजन करके उपवास करे तो ब्रह्मत्वकी प्राप्ति होती

 सार्वभौमव्रत (वराहपुराण) - कार्तिक शुक्ल दशमीको प्रातः स्नान करके नक्तव्रत करनेकी प्रतिज्ञा करे और विविध प्रकारके चित्र-विचित्र गन्ध-पुष्पादिसे दिशाओंका पूजन करके दध्योदनादिकी शुद्ध बलि दे। उस समय - 'सर्वा भवत्यः सिध्यन्तु मम जन्मनि जन्मनि।' यह प्रार्थना करे और अर्धरात्रिमें दध्योदन (दही और भात) का भोजन करे। इस प्रकार प्रत्येक मासकी शुक्ल दशमीको वर्षभर करे तो दिग्विजयी (अथवा सर्वत्र विजयी) होता है।


जय श्रीमन्नारायण 

पं. नवल किशोर भार्गव 

मो.नं.9981068449

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