मध्यप्रदेश के ग्वालियर व्यापार मेला जोकि कई दशकों से भरता हुआ चला आ रहा है ग्वालियर व्यापार मेले में लोगो को सबसे ज्यादा इंतजार बाहनों पर मिलने वाली टैक्स छूट का रहता है दूसरी ओर इलेक्ट्रोनिंक सामानों पर भी मेले में छूट का इंतजार लोग करते है साथ ही मेले में एक ही कैंपस घरेलू सामान से लेकर खाने पीने का सामान एवं बच्चों के लिये झूले भी मेले में मिल जाते है जिसके चलते लोग ग्वालियर के व्यापार मेले का काफी इंजतार करते है ग्वालियर व्यापार मेले का शुभारम्भ बैसे तो 25 दिसम्बर को हो जायेगा किन्तु मेले में सही आनंद मकर सक्रांति के बाद भी आयेगा क्योंिक मेले में दुकानों के लगने का क्रम अभी जारी है।
ग्वालियर व्यापार मेला ग्वालियर में आयोजित किया जाने वाला उत्तर भारत में एक बड़ा व्यापार मेला है इसकी शुरुआत 1905 में ग्वालियर के तत्कालीन राजा, महाराज माधोराव सिंधिया ने की थी आज यह एशिया का सबसे बड़ा व्यापार मेला है।
मेला 104 एकड़ (0.42 कि॰मी2) में फैला हुआ है और कई ब्लाक और सेक्टरों में बँटा हुआ है रेसकोर्स रोड पर स्थित मेला ग्राउंड को मध्य प्रदेश का प्रगति मैदान भी मानते हैं ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण हर वर्ष इस मेले का आयोजन करता है।
मेले के प्रमुख आकर्षण हास्य कवि सम्मेलन, क़व्वाली दंगल, मुशायरे, शाम को होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत रात्रियाँ, और कई अन्य गतिविधियाँ मेले का अभिन्न अंग हैं पशु व्यापार मेला मेले का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसमें हर साल लगभग 10,000 जानवरों को बेचा या खरीदा जाता है शिल्प बाज़ार ग्वालियर व्यापार मेले का एक सुंदर आकर्षण है इस बाजार में, विभिन्न प्रकार की हस्तनिर्मित चीजें पूरे भारत के लोगों द्वारा बेची जाती हैं।
भारत में अस्था का केन्द्र कुम्भ मेला जोकि 4 धार्मिक मान्यता वाले स्थानों पर एक स्थान पर 12 वर्ष में एक बार भरता है मान्यता है कि अमृत मंथन के दौरान जिन 04 स्थानों पर अमृत की बूंदे गिरी थीं उन स्थानों पर कुम्भ मेला 12 वर्ष में एक बार भरने का निर्णय सनातन धर्म से जुड़े लोगो ने हजारों वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया था तब से 12 वर्ष में एक बार चार में से एक स्थान पर कुम्भ मेला प्रारम्भ हुआ जिसकी शुरूआत प्रयागराज में 14 जनवरी से प्रारम्भ हो रही है जोकि 26 फरवरी महाशिवरात्रि तक कुम्भ मेला आयोजित किया जायेगा।
कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन है. जिसका आयोजन हर 12 साल में देश के चार पवित्र स्थानों - संगम नगरी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन या नासिक में होता है इस बार प्रयागराज में मेला लगने जा रहा है कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति से होती है और इसका समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है. आपको बता दें कि इस पवित्र मेले में भाग लेने देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं क्या आपको पता है कुंभ के चार प्रकार होते हैं, जिनमें कुंभ, महाकुंभ, अर्धकुंभ, और पूर्णकुंभ है आइए जानते हैं इनमें क्या अंतर है.........,
12 साल बाद कैसे तय की जाती है महाकुंभ मेले की तारीख और जगह
कुंभ मेला
यह हर 12 वर्षों में एक बार हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में से किसी एक स्थान पर आयोजित किया जाता है महाकुंभ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु और संत शामिल होते हैं जो पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।
अर्ध कुंभ
वहीं, अर्ध कुंभ मेला हर 6 साल पर आयोजित किया जाता है. यह कुंभ केवल प्रयागराज और हरिद्वार में लगता है. अर्ध कुंभ में मुख्य रूप से स्नान का महत्व है, और यह भी एक महत्वपूर्ण अवसर है जब भक्तगण पवित्र नदी में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।
पूर्ण कुंभ
12 साल में लगने वाले कुंभ मेले को ही पूर्ण कुंभ कहते हैं. यह संगम तट प्रयागराज में ही आयोजित किया जाता है. प्रयागराज में लगने वाले कुंभ का विशेष महत्व होता है क्योंकि, पूर्ण कुंभ की तिथि ग्रहों की शुभ संयोग पर तय की जाती है जिसके कारण लाखों करोंड़ों की संख्या में हिन्दू धर्म के अनुयायी यहां एकत्रित होते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं।
महाकुंभ
वहीं, महाकुंभ 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आयोजित किया जाता है महाकुंभ की तिथि 144 साल बाद आती है यही वजह है कि लोग महाकुंभ में स्नान करने को विशेष महत्व देते हैं इस साल महाकुंभ संक्रांति यानी 13 जनवरी, 2025 से शुरू हो रहा है 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा।
कैसे तय होती है कुंभ की तारीख
दरअसल, कुंभ मेला किस स्थान पर आयोजित किया जाएगा यह तय करने के लिए ज्योतिषी और अखाड़ों के प्रमुख एक साथ आते हैं और बृहस्पति और सूर्य की स्थिति का निरीक्षण करते हैं. बृहस्पति यानी गुरु और सूर्य दोनों हिंदू ज्योतिष में प्रमुख ग्रह हैं इनकी गणना के आधार कुंभ मेले का स्थान और तिथि तय की जाती है।
प्रयागराज का पुराना नाम प्रयाग था. मुगल सम्राट अकबर ने संगम के सामरिक महत्व को देखते हुए, इस शहर का नाम बदलकर इलाहाबाद रखा था. इलाहाबाद का मतलब होता है, श्अल्लाह का शहरश्. अक्टूबर, 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका नाम बदलकर फिर से प्रयागराज कर दिया.........,
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश का एक महानगर है. यह गंगा, यमुना, और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है. इसे तीर्थराज या त्रिवेणी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू शास्त्रों में इस जगह का विशेष महत्व है. यह कुंभ मेले के चार स्थलों में से एक है......,