दुनिया का 7वां सबसे ज्यादा प्राकृतिक आपदा प्रभावित देश है भारत
उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटकर धौली गंगा नदी में गिरने और उससे मची तबाही के बाद एक बार फिर जलवायु परिवर्तन और उसके विपरीत प्रभावों की चर्चा होने लगी है. भारत में ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं. बीते दो दशक की बात करें तो गुजरात के भुज में आया भूकंप हो, जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ या फिर केदारनाथ की त्रासदी. इन सभी प्राकृतिक आपदाओं ने खूब तबाही मचाई. इसके अलावा भारत की समुद्री सीमा काफी लंबी है. समुद्र किनारे स्थित राज्यों जैसे ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल में समय समय पर साइक्लोन आते रहते हैं. पर्यावरण के विषयों पर शोध करने वाली संस्था जर्मनवॉच ने अपनी ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 में भारत को प्राकृतिकआपदा की संभावना वाले देशों की सूची में 7वें स्थान पर रखा है. इसका मतलब हुआ कि भारत दुनिया का 7वां सर्वाधिक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देश है. इस इंडेक्स के मुताबिक दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देश मोजाम्बिक, जिंबॉब्वे, बहामा, जापान, मलावी और अफगानिस्तान हैं. चूंकि भारत का एक बहुत बड़ा हिस्सा हिमालयन प्लेट पर बसता है. हिमालयन प्लेट में हरकतें होती रहती हैं. इसलिए देश का एक बड़ा भूभाग अर्थक्वेक जोन में आता है. हिमालय क्षेत्र में लगातार भूकंप के झटकों से भूस्खलन जोन बढ़ रहे हैं. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इन नए अर्थक्वेक जोन की वजह से हिमालय क्षेत्र की डेमोग्राफी में भी बदलाव आ सकता है. वैज्ञानिकों ने हिमालय क्षेत्र में एकत्र हो रही भूगर्भीय ऊर्जा और नए भूस्खलन जोन के मद्देनजर सुरक्षित स्थलों को चिन्हित करने की सलाह भारत सरकार को दी है. उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र के भूस्खलन जोन के बारे में विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) ने वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद पैदा हुई स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट उत्तराखंड शासन को भी सौंप है. जर्मनवॉच ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित घटनाओं, प्राकृतिक आपदाओं के आधार पर देशों का विश्लेषण करने के बाद ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स तैयार की है. इस रिपोर्ट में वर्ष 2000 से 2019 के बीच आईं प्राकृतिक आपादाओं के आंकड़ों को शामिल किया गया है. नीदरलैंड में आयोजित होने वाले ग्लोबल क्लाइमेट एडाप्टेशन समिट से पहले यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2019 के बीच जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित 10 देशों में 8 एशिया और अफ्रीका महाद्वीप में स्थित हैं. जर्मनवॉच की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 और 2019 के बीच 11,000 से अधिक प्राकृतिक आपदाएं आईं. इनमें 4.75 लाख से ज्यादा लोगों की मौतें हुईं और 2.56 लाख करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ. वर्ष 2019 में 10 सबसे प्रभावित देशों में 6 उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की चपेट में आ गए थे. दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में सबसे घातक और महंगा उष्णकटिबंधीय चक्रवात इडाई था. अफ्रीकी देश मोजाम्बिक और जिंबाब्वे इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए थे.वर्ष 2019 में भारत में मॉनसून करीब एक महीने लंबा खिंच गया था. जून से सितंबर तक औसत से 110 फीसदी ज्यादा बारिश हुई. यह 1994 के बाद सबसे अधिक थी. बाढ़ के कारण भारत के 14 राज्यों में कुल 1800 मौतें हुईं और करीब 18 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा. मॉनसून के लंबा खिंचने से कुल 1.18 करोड़ लोग प्रभावित हुए और 1000 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ. भारत एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है. इसलिए जलवायु परिवर्तन का बुरा प्रभाव हमारे देश पर ज्यादा पड़ रहा है. जर्मनवॉच की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के नुकसान से बचने के लिए और जान-माल की सुरक्षा के लिए बेहतर अनुकूल उपायों और एकीकृत जोखिम प्रबंधन रणनीतियों की जरूरत है. इमरजेंसी की स्थिति में जागरूकता और तैयारी लोगों को जल्दी प्रतिक्रिया देने में सक्षम बना सकती है. बांग्लादेश ने इस दिशा में अच्छा काम किया है. यह देश साइक्लोन से सर्वाधिक प्रभावित है. लेकिन बेहतर पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली होने से 40 वर्षों में यहां साइक्लोन होने वाली मौतों में 100 गुना से ज्यादा की कमी आई है.