प्रभु संकीर्तन - अनेक संतो और हमारे शास्त्र सभी कहते है कि भक्ति पाने का सबसे सहज मार्ग नाम जप है। बात तो साधारण सी है, पर नाम जप का आधार ही हमे परमात्मा से मिलने की सीढ़ी है। बात सीधी है जब हम जिसका चिंतन करते है हमारी स्थितियां, परिस्थितियां उसी ओर मुड़ जाती है।जब हम चिंतन का रहे होते है हमारे सोचने,समझने और कार्य करने के तरीके सकारात्मकता की ओर बढ़ने लगते है। फिर हम किसी के अमंगल की कल्पना भी नहीं कर सकते।जब विचार शुद्ध हो जायेंगे तो कल्पना करें आप किसी का अहित कैसे कर सकते है।जब आप से किसी काअहित नहीं होगा तो फिर आप तो वैसे ही श्री हरि की शरण में जाने का अपना मार्ग बना रहे होंगे। न केवल हम दुख से छूट जायेंगे जगत के बंधन से भी छूट जाएँ। माने जब तक शरीर रहेगा, तब तक दुख नहीं होगा और शरीर छूटने पर दोबारा शरीर में आना नहीं पड़ेगा।
"भगवान जो करें, जैसा करें, जब करें, वैसा ही होने देने में हमारा कल्याण है।"इसीलिए, क्या होगा? कैसे होगा? कब होगा? यह सब भगवान पर छोड़ कर निश्चिंत हो जाओ। विपत्ति के आवेश में आकर पाप मत करो। जब प्रत्येक पल आप नाम जप की स्थिति में होंगे तो आप क्रोध से भी मुक्त रहेंगे। विपरीत परिस्थिति में ही भगवान का कोई मंगलमय विधान है" ऐसा समझकर शांत रहें।
जब एक सिपाही भी साथ हो तो भय नहीं रहता, तब उस "सर्वेश्वर की शक्ति का क्या कहना जब भगवान साथ हैं" ऐसी श्रद्धा हो तो भय कैसा?
विचार करो! जब मन में भय होता है तो हमे प्रत्येक कार्य को करने मे भय लगता है।जब मन में किसी भी प्रकार का भय न हो, तब बाहर भय का कारण होने पर भी भय नहीं लगता। तो फिर सब कुछ दृढ़तापूर्वक भगवान पर ही छोड़ देने पर भय कैसा?
यह सर्व सत्य है कि अभाव के अनुभव से उसे पूरा करने की इच्छा होती है। इच्छा से चेष्टा, और चेष्टा होने पर पुनः नए नए अभाव अनुभव होते हैं। उनकी पूर्ति करते करते आयु बीत जाती है। जिस जीवन से भगवान मिल सकते हों, वह अभावों की पूर्ति में ही बीत जाए, और अभाव फिर भी बना रहे, यह कितनी बड़ी हानि है?
दुनियादारी में वाद विवाद करने से क्या प्राप्त होगा? कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।प्राप्त करने योग्य पदार्थ को प्राप्त कर लेने में ही विद्या की पूर्णता है, न कि व्यर्थ वाद विवाद करने में।हम बाते तो सद मार्ग पर चलने की बहुत करते हैं,परंतु सद मार्ग की राह पकड़ नही पाते, क्योंकि हमारा विश्वास डगमगा जाता है।हमे उस परमात्मा पर दृढ़ विश्वास रखना होगा।हमें भगवान के भरोसे की चादर तान कर, उन्हीं भगवान की प्राप्ति के लिए, किन्हीं संत का संग करना चाहिए जिनका ध्यान स्वयं भगवान करते हैं। हाँ! संत तो भगवान का ध्यान करते हैं, पर भगवान किस का ध्यान करते हैं? भगवान संतों का ध्यान करते हैं। संत तो तीर्थों को भी तीर्थ बनाने वाले हैं।
तो भगवान की प्राप्ति के लिए संत का संग करो और संत की प्राप्ति के लिए भगवान के नाम का जप करो।
नाम जप में जो दो ही बाधाएँ हैं, तर्क और आलस्य। इन दोनों को त्याग कर, एक एक नाम को ऐसे संभालो जैसे कोई कंजूस एक एक पैसा संभालता है।
दो बातों पर हमारी श्रद्धा होनी चाहिए, भगवान की कृपा और नाम जप। जिसे न भगवान की कृपा पर भरोसा है, न नाम जप पर, वह सारी दुनिया के भौतिक पदार्थ पा कर भी अंदर से शून्य ही रहता है।हमे इसी शून्य को भगवान के नाम जप से भरना है।ऐसा माना जाता है कि कलयुग में भगवान का नाम जपने से ही सभी दुखों को समाप्त किया जा सकता है। भगवान के नाम सुमिरन कैसे भी किया जाये फल अवश्य ही मिलता है। भगवान की महिमा अनत है, भगवान का नाम जपने से कलयुग में मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रीहरि के नाम की महिमा भी अनत है। श्रीहरि के नाम की महिमा जो मनुष्य परमात्मा के दो अक्षर वाले ‘हरि’ के नाम का उच्चारण करते हैं, वे उसके उच्चारण मात्र से मुक्त हो जाते हैं, इसमें शंका नहीं है।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
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