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संसार के सभी पदार्थ नासवान है इस लिये इन पर विश्वास करना मूर्खता है, परमात्मा नित्य है, अविनाशी है - Kolaras



कोलारस - संसार के सभी पदार्थ नश्वर है इसलिए इन पर  विश्वास करना मूर्खता है, परमात्मा नित्य है, अविनाशी है, उस पर विश्वास करें तो वह बुद्धिमता है।लेते रहने का भाव मूर्खता है देते रहने की इच्छा रखना ही बुद्धिमत्ता है। जब मन मे देने का भाव हो तो मूर्खता दूर हो जाती हैं।और फिर मन पूर्ण ज्ञानमय हो जाता है।  देते रहने की प्रवर्ति से परिपूर्ण मनुष्य, साधक हो जाता है ।

इन्द्रियों को भोगों में न लगाकर सेवा में लगाना इस स्थूल शरीर की सेवा है । दुसरो का चिन्तन करना, भगवान्‌ का चिन्तन करना है । क्योंकि भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं।दान पुण्य के लिये धन का होना आवश्यक नही।किसी को दुख देकर फिर उसे सुख देने से अच्छा किसी को दुख ही नही देना चाहिए।  

सर्वत्र  सुखकी इच्छा ही बहुत बड़ा दान है । किसी वस्तु का अभाव वस्तु के होने से नही,अपितु वस्तु की चाह न रहने से दूर होगा। है। दुसरो की सेवा से  जड़ता मिटती है और चिन्मयता आती है ।

सृष्‍टि की दृष्‍टि से देखें तो सब भगवान की  सन्तान है।  इसलिए हम सब एक है। इस एकता में भी अनेकता है । सब एक होते हुए भी अनेक हैं और अनेक होते हुए भी एक हैं । एक माननेसे राग-द्वेष नहीं होंगा क्योंकि कोई स्वयं का बुरा नही करता।जिस प्रकार हम अपने शरीर के किसी अंग को पीड़ा नही देते,उसी प्रकार सबको एक मानते हुए हम सब को सुख पहुंचाने का प्रयास करेंगे।यह हमारे सनातन धर्म की पहचान भी है।

यदि दूसरेके हितका भाव नहीं होगा तो परस्पर एकता कभी नहीं होगी । सब संसार अपना है, पराया नहीं । कोई और नहीं है, कोई गैर नहीं है‒इस भावसे सभी सुखी हो जायँगे । इसको अपने घरसे ही शुरू करो । आपके आचरणका दूसरोंपर बड़ा असर पड़ेगा । आचरण न करके केवल उपदेश देना,तर्क संगत नही लगता। किसी बुजुर्ग को बस में अपनी सीट देना,राह चलते किसी नेत्र हीन को रास्ता दिखाना,अपने भोजन में से पक्षियों के लिए ग्रास निकालना, किसी रोगी की सेवा करना,किसी अनपढ़ को थोड़ा बहुत पढ़ाना, यह सब बिना धन के दुसरो को सुख देने के मार्ग है।इन पर चलकर देखिए,कितनी आत्म सन्तुष्टि मिलती है।

 अन्तमें तत्त्व एक ही है । एक ही परमात्मा अनेक रूप में हैं । अनेक होते हुए भी एकता नहीं मिटती । समुद्रमें बर्फके अनेक टुकड़े डाल दें तो तत्त्वसे एक जलके सिवाय कुछ नहीं है । ऐसा भाव हो जायगा तो फिर मन कहीं भी जाय, परमात्मा में ही जायगा । मनके द्वारा सदैव परमात्मा का ही चिंतन होगा।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।

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Milan Tomic

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