श्रीकृष्ण में वह सब कुछ है जो मानव में है और मानव में नहीं भी है! वे संपूर्ण हैं, तेजोमय हैं, ब्रह्म हैं।"कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है, जिसमें मोह भी शामिल है, नेह भी शामिल है ,स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है ॥
कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खीचना यानी आकर्षण और मोह तथा सम्मोहन का मोहन भी तो कृष्ण है ॥
वह प्रवृति से प्यार करता है। वह प्रकृति से प्यार करता है।गाय से पहाड़ से,मोर से, नदियों के छोर से प्यार करता है।
वह भौतिक चीजों से प्यार नहीं करता। वह जननी (देवकी ) को छोड़ता है, जमीन छोड़ता है,जरूरत छोड़ता है ,जागीर छोड़ता है, जिन्दगी छोड़ता है ॥
पर भावना के पटल पर उसकी अटलता देखिये -वह माँ यशोदा को नहीं छोड़ता -देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता -सुदामा को गरीबी में नहीं छोड़ता -युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता ॥
वह शर्तों के परे सत्य के साथ खडा हो जाता है-टूटे रथ का पहिया उठाये आख़िरी और पहले हथियार की तरह। उसके प्यार में मोह है, स्नेह है, संकल्प है, साधना है, आराधना है, उपासना है पर वासना नहीं है। वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता है और इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कह कर पुकारता है।
उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का -उसके प्यार में संगीत है-उसके प्यार में प्रीति है। उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं है। प्यार उपासना है वासना नहीं। उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति । अपनी माँ से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपने मित्र से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी बहन से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी प्रेमिका से प्यार करो कृष्ण की तरह।प्यार उपासना है वासना नहीं, उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति।सारे संसार को कृष्ण की तरह प्यार करो।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
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