दिनांक 19,05,2023 वटसावित्रीव्रत - यह व्रत स्कन्द और भविष्योत्तरके अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमाको और निर्णयामृतादिके अनुसार अमावस्याको किया जाता है। इस देशमें प्रायः अमावस्याको ही होता है । संसारकी सभी स्त्रियोंमें ऐसी कोई शायद ही हुई होगी, जो सावित्रीके समान अपने अखण्ड पातिव्रत्य और दृढ़ प्रतिज्ञाके प्रभावसे यमद्वारपर गये हुए पतिको सदेह लौटा लायी हो। अतः विधवा, सधवा, बालिका, वृद्धा, सपुत्रा, अपुत्रा सभी स्त्रियोंको सावित्रीका व्रत अवश्य करना चाहिये। विधि? यह है कि ज्येष्ठकृष्णा त्रयोदशीको प्रातः स्नानादिके पश्चात् 'मम वैधव्यादि- सकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।'
यह संकल्प करके तीन दिन उपवास करे। यदि सामर्थ्य न हो तो त्रयोदशीको रात्रिभोजन, चतुर्दशीको अयाचित और अमावस्याको उपवास करके शुक्ल प्रतिपदाको समाप्त करे। अमावस्याको वटके समीप बैठकर बाँसके एक पात्रमें सप्तधान्य भरकर उसे दो वस्त्रोंसे ढक दे और दूसरे पात्रमें सुवर्णकी ब्रह्मसावित्री तथा सत्यसावित्रीकी मूर्ति स्थापित करके गन्धाक्षतादिसे पूजन करे। तत्पश्चात् वटके सूत लपेटकर उसका यथाविधि पूजन करके परिक्रमा करे। फिर 'अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते । पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥' इस श्लोकसे सावित्रीको अर्घ्य दे और 'वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः । यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले । तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ॥' इस श्लोकसे वटवृक्षकी प्रार्थना करे। देशभेद और मतान्तरके अनुरोधसे इसकी व्रतविधिमें कोई-कोई उपचार भिन्न प्रकारसे भी होते हैं। यहाँ उन सबका समावेश नहीं किया है। सावित्रीकी संक्षिप्त कथा इस प्रकार है- यह मद्रदेशके राजा अश्वपतिकी पुत्री थी। द्युमत्सेनके पुत्र सत्यवान्से इसका विवाह हुआ था। विवाहके पहले नारदजीने कहा था कि सत्यवान् सिर्फ सालभर जीयेगा। किंतु दृढव्रता सावित्रीने अपने मनसे अंगीकार किये हुए पतिका परिवर्तन नहीं किया और एक वर्षतक पातिव्रत्यधर्ममें पूर्णतया तत्पर रहकर अंधे सास-ससुरकी और अल्पायु पतिकी प्रेमके साथ सेवा की। अन्तमें वर्षसमाप्तिके दिन (ज्ये० शु० १५ को) सत्यवान् और सावित्री समिधा लानेको वनमें गये। वहाँ एक विषधर सर्पने सत्यवान्को डस लिया। वह बेहोश होकर गिर गया। उसी अवस्थामें यमराज आये और सत्यवान्के सूक्ष्मशरीरको ले जाने लगे। किंतु फिर उन्होंने सती सावित्रीकी प्रार्थनासे प्रसन्न होकर सत्यवान्को सजीव कर दिया और सावित्रीको सौ पुत्र होने तथा राज्यच्युत अंधे सास-ससुरको राज्यसहित दृष्टि प्राप्त होनेका वर दिया।
🌷जयश्रीराधे🌷
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