हरीश भार्गव -शाकिर खान कोलारस-बदरवास-चुनाव आयोग विधानसभा एवं लोकसभा के चुनावो में फिजूल खर्ची कम करने के उददेश्य से चुनाव में प्रत्याशियो द्वारा खर्च करने की सीमा निर्धारित कर चुका है। किन्तु निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव में व्यय करने की जो सीमा निर्धारित की गई है क्या उस सीमा के अंदर विधानसभा या लोकसभा के चुनाव होते है। यह भी निर्वाचन आयोग को देखने बाली बात है। क्यो कि निर्वाचन आयोग द्वारा प्रत्याशियो को चुनाव में खर्च करने की जो वैद्य राशि प्रत्याशियो के हिसाव से जोडी जाती है प्रत्याशी चुनाव में उससे सौ गुना अधिक नगदी, शराब, सामाग्री के रूप में चुनाव जीतने के लिए खर्च करते है। जब निर्वाचन आयोग चुनाव में खर्च करने की सीमा का पालन नही करा पाता फिर भला ऐसी स्थिति में प्रत्याशियो पर खर्च करने की जो सीमा या पावंदी लगाई गई है। उसका सही मायने में क्या अर्थ निकलता है। प्रत्याशियो के ऊपर लागू चुनाव में खर्च करने की सीमा के चलते केवल और केवल प्रचार प्रसार पर विशेष रूप से असर दिखाई देता है। जिसके चलते मीडिया को मिलने बाले विज्ञापन से लेकर हूडिंगस बैनर, पेम्पलेट झण्डे इत्यादि का व्यापार निर्वाचन आयोग के आदेश से प्रभावित या यूं कहे खत्म अवश्य हुआ है। किन्तु प्रत्याशियो पर लागू खर्च करने की सीमा का पालन कराने में निर्वाचन आयोग न तो अभी तक सफल हो पाया है और न ही आगे इसकी संभावना है।
मुंगावली विधायक मंच से लगा चुके है करोडो बांटने का आरोप
कोलारस उप चुनाव के बाद सब्जी मंडी प्रांगण में आयोजित आभार सभा में मंच पर मौजूद क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, कोलारस विधायक महेन्द्र यादव के अलावा वहां मौजूद प्रशासनिक अधिकारियो के समक्ष मुंगावली विधायक ब्रजेन्द्र सिंह यादव ने प्रशासन पर आरोप लगाते हुये कहा कि उप चुनाव के दौरान मुंगावली में डायल 100, जननीएक्सपे्रस जैसे सरकारी वाहनो से प्रशासनिक मशीनरी का दुरूपयोग करते हुये जनता के बीच रातो रात भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में प्रशासन द्वारा करोडो रूपये बटवाये गये। मुंगावली विधायक ब्रजेन्द्र सिंह द्वारा उप चुनाव के दौरान बांटे गये करोडो रूपयो का आरोप यदि सही है तो निर्वाचन आयोग के द्वारा खर्च करने की निर्धारित सीमा का खुलेआम उल्लंघन होना सिद्घ होता है और यदि मुंगावली विधायक का आरोप निराधार है तो मुंगवाली विधायक पर कार्यक्रम में मौजूद प्रशासनिक अधिकारियो ने निर्वाचन आयोग के खर्च करने की सीमा का उल्लंघन करने का यदि झूठा आरोप लगा तो उन पर मामला दर्ज क्यो नही किया गया। कुल मिला कर निर्वाचन आयोग द्वारा खर्च करने की जो सीमा निर्धारित की गई है उसका पालन नही हो रहा केवल प्रचार प्रसार पर पावंदी का असर अवश्य दिखाई दे रहा है।
निर्वाचन आयोग के द्वारा खर्च करने की सीमा से प्रिंटिंग व्यवसाय हुआ वर्वाद
निर्वाचन आयोग द्वारा विधानसभा एवं लोकसभा के चुनावो में खर्च की सीमा पर लगाई गई पावंदी का पालन केवल और केवल प्रचार प्रसार के मामलो में दिखाई दे रहा है क्यो कि प्रचार प्रसार को छोड कर चुनाव में बटने बाले करोडो रूपयो से लेकर शराब एवं सामाग्री पर रोक लगाने में निर्वाचन आयोग सफल नही हो पाता केवल हूडिंग्स वैनर, टेम्पलेट, दीवार लेखन, प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक, न्यूज वेव साईट पर अनुमति लेकर खर्च करने की सीमा निर्धारित करने से चुनाव में होने बाला व्यापार व्यावसाय निर्वाचन आयोग के आदेश से वर्वाद अवश्य हुआ है जबकि चुनाव में बटने बाले रूपयो की तादात पूर्व चुनावो से सौ गुना अधिक तक बडी है फिर भला निर्वाचन आयोग के द्वारा खर्च करने की सीमा का पालन कहां होता है।
आचार संहिता के दौरान शासकीय प्रचार रोकना और फिर पुन: करना फिजूल खर्ची
आचार संहिता लगने से पूर्व तक शासकीय कार्यालयो से लेकर जगह जगह शासन की योजनाओ से लेकर जन प्रतिनिधियो एवं अन्य प्रकार के प्रचार प्रशार पर शासन का करोडो रूपया खर्च किया जाता है और आचार संहिता लगने के दौरान उसे हटाया जाता है और आचार संहिता हटने पर पुन: शासकीय प्रचार प्रसार किया जाता है चुनाव से पूर्व हटाना एवं चुनाव बाद पुन: प्रचार करना यह फिजूल खर्ची का एक उदाहरण है निर्वाचन आयोग को बताना चाहिये कि इससे शासन के द्वारा प्रचार प्रसार पर खर्च होने बाला बोझ कितना बडता है कुल मिला कर प्रचार प्रसार पर निर्वाचन आयोग के नियम के असर से प्रिंटिंग का व्यवसाय वर्वाद जबकि प्रचार प्रसार पर अचार संहिता के दौरान सरकार का करोडो बजट चुनाव से पूर्व एवं बाद में वर्वाद किया जाता है। इससे शासन पर एक अतिरिक्त खर्च का वोझ बढता है कुल मिला कर निर्वाचन आयोग के आदेश का न तो चुनाव पर खर्च रोकने में असर दिखाई देता है और न ही शासन के द्वारा प्रचार प्रसार पर खर्च करने की सीमा का असर पडता है निर्वाचन आयोग के आदेश का असर केवल और केवल प्रिंटिंग से जुडे व्यापार व्यवसाय पर चुनाव के दौरान अवश्य दिखाई देता है।