अब चालान जमा कर ही पटवारियों को मिल सकेंगी जमीन की किताब
लोकसेवा केंद्र की समय अबधि निकलने के बाद भी कई आवेदकों को नही मिल सकी पुस्तिकाएं
पूर्व तहसीलदार ने पुस्तक न होने के कारण समय अवधि भी बढ़ाई थी। कमोवेश अधिकतर राजस्व कार्यलयों में ऋण पुस्तिका का अकाल विकराल समस्या बनती जा रही है। उक्क्त अव्यबस्था वर्तमान की समस्या न होकर विगत कई माह से चली आ रही है। जिसका तात्कालीन राजस्व अधिकारियों पर दोष देना ठीक नहीं। न ही इसमें पटवारी समुदाय पर दोषारोपण किया जा सकता। शासकीय स्तर से विना सिर पैर के आदेश किसानों और राजस्व विभाग को मानसिक वेदना देने वाले और प्रताड़ित करने वाले हो रहे है।
पूर्व में पटवारियों को ऋण पुस्तिकाओं के लिए कोई शुल्क नही देना होता था। किंतु वर्तमान नियम अनुसार अब एक पुस्तक के लियेब10 रुपये और उस पर करीब 2 रुपये gst का नियम निर्धारण होने से पटवारी वर्ग में असंतोष व्याप्त है।और पटवारी की इस धनराशि की भरपाई कैसे होगी इसका भी कोई जबाब देने वाला नही है।
यहाँ में भारतीय किसान संघ का जिला सदस्य होने के नाते इस निर्णय का घोर विरोध करता हूँ। यह वेहद चिंतित करने वाला है कि किसानों की ऋण पुस्तिका पर gst लगाया जा रहा है। किसी कृषि प्रधान देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि पूर्व सरकार द्वारा घर घर जाकर पुस्तक वितरण की गई थी और अब उनकी पुस्तक पर पटवारी से 10 रुपए और 2 रुपये gst यानि पूरे 12 रुपये की बसूली। बही सांसद और विधायकों की विलासिता में कोई कटौती नही ये किसान हितैसी सरकार के नाम पर धोखा है। इस समय राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में पूर्व के दुरुस्ती संबंधित निर्णय और वर्तमान के कई निर्णय को लेकर असंतोष का माहौल व्याप्त है। किसान और जनता के काम अधिकारी चाहते हुए भी जल्दी नही कर पा रहे है क्योंकि उनके हाथ दुरूह नियमों ने बांध रखे है।ऋण पुस्तिकाओं पर gst लगने की खबर अभी तक विपक्षी राजनेताओं पर नही है ये उनकी अशिक्षा,सुषुप्त अवस्था, शून्यता और जनता के प्रति अपने गैर जिम्मेदाराना रवैये को दर्शाने वाला है।वो दिन दूर नहीं जब किसान इनके कपड़े फाड़कर इनका जुलूश निकालेगी और इस धोखे के लिए चुनावों में इनका बहिष्कार करेगी। आज अधिकारी , पटवारी वर्ग, जनता और किसान की समस्याओं के समाधान की कोई मध्यस्त धुरी नही दिखाई दे रही है। जिसके कारण किसान और अधिकारियों के बीच आये दिन अन बन हो रही है और 181 पर राजस्व विभाग छाया हुआ है। ऋण पुस्तकें आज राजस्व विभाग के लिए बड़ी मुसीबत बन गई है।। इसको लेकर पटवारी भी अब अड़ गए है तो जनता परेसान है अधिकारी भी उन पर कोई कार्यवाही नही कर सकने की स्थिति में है। इस प्रकार समस्या दिनों दिन जटिल होती जा रही है। बही तकनीकी सुविधाओं के लिए हालहि में तहसीलदार वर्ग ने आंदोलन और ज्ञापन दिया था उसकी भी सरकार ने कोई सुनवाई नही की जिसके चलते तकनीकी तौर पर राजस्व विभाग गर्त में जा रहा है।
भारतीय किसान संघ के जिला सदस्य विवेक व्यास ने बताया ऋण पुस्तिका और कंप्यूटर खसरा भूमि संबंधित कार्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यदि शासन के निर्णय से किसानों को और अधिकारियों को परेशानी हो रही है तो उनको वापिस लिया जाए। अब और अधिक किसानों की परेशानी सहन नही की जा सकती है। अंतिम रास्ता आंदोलन।
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