पंचायत चुनाव से विधानसभा पर 'आप' की नजर, क्या मोदी के गढ़ गुजरात में चलेगी केजरीवाल की 'आंधी?'
अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस-भाजपा के इस गढ़ में आम आदमी पार्टी अपनी जगह बना पाएगी? क्या विधानसभा चुनावों में पार्टी को पंचायत चुनाव जैसी कामयाबी मिलेगी? क्या मोदी के गढ़ गुजरात में अरविंद केजरीवाल की 'आंधी' चलेगी?
विस्तार
जब देश आजाद हुआ तो हर राज्य में एक ही पार्टी की सरकार बनी। सरकार सिर्फ बनी ही नहीं, बल्कि कई दशक तक लगातार राज भी करती रही। यह पार्टी कोई और नहीं कांग्रेस ही है। इसके बाद दूसरी राजनीतिक पार्टी की एंट्री हुई, जिसका नाम भाजपा है। और इस खबर में जिस राज्य के राजनीतिक इतिहास, वर्तमान और भविष्य से हम रूबरू होने जा रहे हैं, उसका नाम है गुजरात। अब सवाल उठता है कि हम आज अचानक गुजरात की सियासत की परतें क्यों खोल रहे हैं तो उसका जवाब हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो अपने राजनीतिक करियर में आज (14 जून) दूसरी बार अहमदाबाद पहुंचे और पंचायत चुनाव में मिले जनता के भरोसे पर विधानसभा का बिगुल फूंक दिया। अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस-भाजपा के इस गढ़ में आम आदमी पार्टी अपनी जगह बना पाएगी? क्या विधानसभा चुनावों में पार्टी को पंचायत चुनाव जैसी कामयाबी मिलेगी? क्या मोदी के गढ़ गुजरात में अरविंद केजरीवाल की 'आंधी' चलेगी? अगर ये तमाम सवाल आपके भी मन में हैं तो यह खास रिपोर्ट आपके लिए ही तैयार की गई है।
ऐसा है गुजरात का राजनीतिक इतिहास
सबसे पहले हम गुजरात के राजनीतिक गौरतलब है कि साल 2022 के दौरान जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनकी लिस्ट में गुजरात का भी नाम हैं। ऐसे में खबर को आगे बढ़ाने से पहले हम राज्य के सियासी इतिहास से रूबरू हो लेते हैं। साल 1960 में बंबई (अब मुंबई) से अलग होकर गुजरात अस्तित्व में आया और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। सत्ता संभालने का यह सिलसिला कांग्रेस ने साल 1990 तक बरकरार रखा। 1995 में भाजपा ने गुजरात की सियासत का स्वाद चखा और इसे अब तक बरकरार रखा है।
गुजरात में कैसे हुई आम आदमी पार्टी की एंट्री?
गौरतलब है कि दिल्ली में पहली बार चुनावी मैदान मारने के बाद से ही आम आदमी पार्टी दूसरे राज्यों में अपना वर्चस्व कायम करने में लगी है। पार्टी ने पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। ऐसे में पार्टी ने गुजरात पंचायत चुनाव का रुख किया और 2090 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। साथ ही, करीब 300 सीटों पर जीत भी दर्ज की। इस जीत के बाद ही पार्टी के हौसले इतने बुलंद हो गए कि उसने विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकने के लिए कमर कस ली।
हार्दिक पटेल पर दांव खेल सकते हैं केजरीवाल
गौरतलब है कि गुजरात की राजनीति पटेल और पाटीदारों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। ऐसे में 2022 के रण से पहले सभी राजनीतिक दल इन दोनों समुदायों को साधने में लगे हैं। ऐसे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने राजनीतिक करियर में दूसरी बार गुजरात पहुंचे तो उन्होंने भी पाटीदारों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। सूत्रों का दावा है कि वह भाजपा से नाराज और कांग्रेस की बेरुखी से परेशान हार्दिक पटेल पर दांव खेल सकते हैं। अहमदाबाद में पार्टी कार्यालय के उद्घाटन के दौरान केजरीवाल ने राज्य की सभी 182 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का एलान भी कर दिया।
पाटीदार भी ठोक रहे ताल
बता दें कि गुजरात में चुनाव से पहले पाटीदार समाज ने भी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने इस बार पाटीदार समाज से मुख्यमंत्री होने को लेकर मोर्चा खोल दिया, जिससे राज्य की सियायत में एक और फ्रंट तैयार हो गए। ऐसे में देखना यह होगा कि अगर पटेल और पाटीदार, भाजपा या कांग्रेस का समर्थन नहीं करते हैं तो फायदा किसे होगा? क्या इस टूट का फायदा आम आदमी पार्टी उठा पाएगी?
क्या टूट जाएगा गुजरात का यह मिथक?
गौर करने वाली बात यह है कि 1960 से लेकर अब तक गुजरात के राजनीतिक इतिहास में तीसरी पार्टी का असर कभी नहीं दिखाई दिया। सूत्रों का कहना है कि ऐसे में आम आदमी पार्टी को अपना वर्चस्व कायम करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। माना तो यह भी जा रहा है कि पार्टी को अपने 'दिल्ली मॉडल' का फायदा उसी तरह मिल सकता है, जैसा उसे पंचायत चुनाव के दौरान मिला। हालांकि, केजरीवाल ने साफ-साफ कहा कि उन्होंने दिल्ली मॉडल को गुजरात में लागू करने के लिए कोई योजना नहीं बनाई, क्योंकि हर राज्य की जरूरतें अलग होती हैं। उनकी अपनी समस्याएं और समाधान हैं। ऐसे में गुजरात के लिए विकास का अपना मॉडल चुनेंगे। अब राज्य का राजनीतिक भविष्य कैसा होगा, यह तो 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद ही पता लगेगा। हालांकि, गौर करने वाली बात यह है कि 1975 और 1990 को छोड़ दिया जाए तो गुजरात की जनता ने एक ही राजनीतिक दल को बहुमत दिया है। ऐसे हालात में भाजपा की स्थिति इतनी कमजोर नजर नहीं आती कि उसे गद्दी से हटाया जा सके। वहीं, कांग्रेस इतनी मजबूत भी नहीं दिखती कि आम आदमी पार्टी उसे तीसरे नंबर पर न धकेल पाए।