महाभारत युद्ध के अंत में जब अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश का विनाश करने के लिए, अभिमन्यु की पत्नि उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चला दिया था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा और उनकी होने वाली संतान की रक्षा की थी।
🍁 उसके पश्चात्, श्रीकृष्ण द्वारका जाने लगे थे, तब मार्ग में माता कुन्ती आती हैं और रथ रोक देती हैं।
🍁 भगवान श्रीकृष्ण रथ से उतरते हैं और बुआ कुन्ती को प्रणाम करते हैं।
🍁 तब माता कुन्ती भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत स्तुति करती हैं -- जिसके कुछ अंश इस प्रकार से हैं,
~ हे कृष्ण, हे वासुदेव, हे देवकीनंदन, हे नन्द के लाला, हे
गोविन्द! आपको मेरा प्रणाम। 🙏🪔
~ जिनकी नाभि से ब्रह्मा का जन्मस्थान कमल प्रकट हुआ
है। जिन्होंने कमलों की माला धारण की है, जिनके नेत्र
कमल के समान विशाल और कोमल हैं, और जिनके चरणों
में कमल चिह्न हैं -- ऐसे हे कृष्ण! आपको बार-बार वंदन है।
🍁 तब श्रीकृष्ण पूछते हैं, "बुआ, आप मेरी इतनी स्तुति क्यों कर रही हैं? क्या कुछ मांगने की इच्छा है?
🍁 माता कुन्ती कहती हैं -- "हे कृष्ण! क्या तुम्हारी स्तुति कोई केवल तभी करता है जब कुछ मांगने की इच्छा हो?"
🍁 श्रीकृष्ण कहते हैं -- "बुआ, इस संसार में ऐसा ही देखने को मिलता है।"
🍁 तब माता कुन्ती जो कहती हैं उसे ध्यान से पढ़िए --
🌼🌼🪔🪔🪔🪔🪔🪔🌼🌼
🍁 "हे मेरे कान्हा! तू मुझे कुछ देना ही चाहता है तो दुख दे दे।
🍁 श्रीकृष्ण कहते हैं -- "बुआ, यह क्या मांग रही हैं? संसार में तो सुख के अतिरिक्त कोई कुछ नहीं मांगता। आप दुख क्यों माँग रही हैं?"
🍁 माता कुन्ती कहती हैं --
"मेरे कान्हा, ऐसा सुख किस काम का जिसे मिलते ही तुम हमें छोड़ कर जा रहे हो। जब तक दुख और कठिनाईयाँ थी, तुम सदैव हमारे साथ थे। इसलिए मुझे तो केवल दुख ही चाहिए, जिससे की आप प्रति क्षण हमारे साथ रहें।"
▪️ "सुख के माथे सील पर जो हरि नाम भुलाए,
बलिहारी वा दुख के, जो पल-पल हरि नाम रटाए।"
🍁 अर्थात् -- ऐसा सुख जो आपको भुला दे, मुझे नहीं चाहिए। मुझे तो दुख ही प्रिय हैं जब हम हर पल आपका स्मरण करते रहें।
🍁 माता कुन्ती कहती हैं -
"हे जगद्गुरु! हमारे जीवन में हमेशा जहां-जहां हम जाएं, विपत्तियां आती रहें, जिससे आपके दर्शन हों और इस संसार का, भव का दर्शन न हो, जन्म-मृत्यु के चक्र में नहीं पड़ना पड़े।"
🍁 माता कुन्ती के द्वारा की गई भगवान् श्री कृष्ण की भक्ति-भावित स्तुति श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम स्कंध अध्याय आठ, श्लोक- 18 से 43 तक में वर्णित है। 🙏📙
श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद की जय 🙏🪔
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