एक बार महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य व्रज परिक्रमा करते करते अपने सेवकों के साथ गहवर वन में से पसार हो रहे थे।
वहां रास्ते में एक अजगर पड़ा था। असंख्य चींटीयां उस अजगर के शरीर को काट रही थीं।
यह दृश्य देखकर सेवक विचार करने लगे। दामोदरदास हरसानी ने श्रीवल्लभ को इस दृश्य का कारण पूछा।
श्रीवल्लभ ने कहा : यह अजगर पूर्व जन्म में वृंदावन का एक महंत था। ये चींटियां उसकी सेवक थीं।
इस महंत ने सेवकों के पास से भारी मात्रा में द्रव्य एकत्रित किया था।
उस द्रव्य का उपयोग उसने परोपकार या भगवत्कार्य में नहीं किया, उसने अपने मौज शोख में वह द्रव्य का खर्च किया।
गुरु को मौज शोख करते देखकर, सेवकों ने भी धर्माचरण छोड़कर मौजशोख करना शुरू कर दिया।
कालान्तर में उस महंत और उसके सभी सेवकों की मृत्यु हो गयी.. महंत को अजगर का शरीर मिला और सेवकगण को चींटी का शरीर मिला।
वे सेवकगण चींटियों के स्वरूप में अजगर को काटकर कहती हैं.. हमारा उद्धार करने की तुम्हारे में शक्ति नहीं थी, तो हमें शिष्य बनाकर क्यों खराब किया.?
हमारे पास जो धन (द्रव्य) था वह हमसे क्यों छीन लिया.?
गुरुपद पर बैठनेवाले को अपने अंदर गुरु बनने के लक्षण हैं या नहीं उसका विचार करना चाहिए।
श्रीवल्लभ ने अजगर तथा चींटियों पर दया दिखाकर अपने हाथ में जल लेकर, वेदमंत्र का स्मरण करके वह जल उनके ऊपर डाला और उस अजगर तथा चींटियो का उद्धार हुआ।
कर्म का फल तो भुगतना पड़ेगा.....
संत वाणी
राम राम
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