कोलारस - दीपोत्सव महापर्व का प्रारम्भ धनतेरस के साथ हो जाता है मान्यता के अनुसार दीपोत्सव का महापर्व 05 दिवस का रहता है किन्तु इस बार अमावस्या का प्रवेष सोमवार को होगा और मंगलवार तक अमावस्या होने के कारण इस बार पिछले वर्ष की भांति दीपोत्सव महापर्व 05 की जगह 06 दिन यानि की शनिवार से प्रारम्भ होकर गुरूवार तक दीपोत्सव महापर्व मनाया जायेगा।
18 अक्टूबर शनिवार धनतेरस के बारे में जानकारी पत्र के माध्यम से जगत गुरू स्वामी श्री घनष्याम आचार्य जी महाराज के द्वारा दीपोत्सव को लेकर जो पत्र जारी किया गया है उसके अनुसार शनिवार 18 अक्टूबर को धनतेरस यानि की कुवेर जी की पूजा होगी साथ ही भगवान धनवंतरी पूजा भी धनतेरस के दिन की जाती है धनतेरस शनिवार को है जिसमें पूजन का समय शाम 06 दिन से रात्रि 08ः35 तक है।
19 अक्टूबर रविवार निर्णय सागर पंचाग के मत अनुसार मासिक षिवरात्रि यानि की छोटी दीपावली के रूप में दीपोत्सव पर्व मनाया जायेगा।
20 अक्टूबर सोमवार को निर्णय सागर पंचाग के मत अनुसार रूप चतुर्दषी के साथ छोटी दीपावली भी मनाई जायेगी इस दिन अमावस्या का भी प्रवेष सोमवार को हो चुका है जिसके चलते कुछ पंचाग सोमवार को भी बडी दीपावली मनाने की बात बता रहे है किन्तु निर्णय सागर पंचाग से लेकर स्वामी श्री घनष्याम आचार्य जी एवं अन्य संत तथा मंदिरों पर दीपोत्सव का महापर्व मंगलवार को मनाया जायेगा।
21 अक्टूबर मंगलवार को स्वामी श्री घनष्याम आचार्य जी के द्वारा जारी किये गये पत्र के अनुसार दीपोत्सव का महापर्व मनाया जायेगा इस दिन, दिन में 09ः33 से 10ः58 चंचल बेला में महालक्ष्मी पूजन होगा इसके बाद दिन में 10ः58 से दोपहर 01ः43 तक लाभ अमृत बेला का महूर्त है उसके बाद दोपहर 12ः00 से 12ः45 तक अवजीत वेला का महूर्त है दिन में 3ः11 से 4ः36 तक शुभ वेला का महूर्त रहेगा इसके उपरांत शाम 06 बजे से 07ः15 तक गोधूलि वेला का महूर्त रहेगा इसके उपरांत शाम 07ः25 से रात्रि 09ः22 तक बृषभ लग्न तथा मध्य रात्रि 01ः53 से सुबह के 04ः08 तक सिंह लग्न में मंगलवार को दीपोत्सव का महा बड़ा पर्व मनाये जाने की पुष्टी स्वामी श्री घनष्याम आचार्य जी के अलावा निर्णय सागर पंचाग, स्वामी श्री केषवाचार्य जी महाराज एवं अन्य मंदिरों के पुजारी भी मंगलवार को दीपोत्सव का पर्व मनाने की बात कह रहे है।
22 अक्टूबर बुधवार को गोवर्धन पूजा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने गिर्राजी के रूप में स्वयं की पूजा वृज में करवाई थी तभी से गोवर्धन पर्वत के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है इसके साथ ही गोवर्धन पूजा से लेकर देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा 05 नवम्बर तक मंदिरों से लेकर जगह जगह अन्नकूट प्रसाद वितरण के कार्यक्रम जारी रहेंगे।
23 अक्टूबर गुरूवार को भाई दौज का महापर्व मनाया जायेगा इस दिन देव यमराज ने यमुना माताजी से मंगल तिलक लगवाकर उन्हे अपने बहन माना था तब से भाई दौज का पर्व मनाया जाने लगा ऐसी मान्यता है कि जो लोग यमुना जी में अपना आधा शरीर पानी के अंदर रख कर बहन से मंगल तिलक लगवाते है उन्हे यम यातनाओं से छुटकारा मिल जाता है।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं - पं. नवल किशोर शास्त्री जी
दिनांक 18,10,2025 शनिवार को धन तेरस यम दीपदान धन्वंतरी जयंती,
दिनांक 19,10,2025 रविवार को नरक चौदस रुप चतुर्दशी, दिनांक 20,10,2025 सोमवार को दीपावली महानक्ष्मी पूजन
ऋषिकेश आदि पंचागानुसर
दिनांक 21,10,2025मंगलवार को दीपावली निर्णय सागर पंचांग अनुसार
दिनांक 22,10,2025 बुधवार को अन्नकूट गोवर्धन पूजा
दिनांक 23,10,2025गुरुवार को भाई दोज
विधि नीचे दी है
(८) यम-दीपदान (स्कन्दपुराण) - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशीको सायंकालके समय किसी पात्रमें मिट्टीके दीपक रखकर उन्हें तिलके तेलसे पूर्ण करे। उनमें नवीन रूईकी बत्ती रखे और उनको प्रकाशित करके गन्धादिसे पूजन करे। फिर दक्षिण दिशाकी ओर मुँह करके 'मृत्युना दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ।' से दीपोंका दान करे तो उससे यमराज प्रसन्न होते हैं। यह त्रयोदशी प्रदोषव्यापिनी शुभ होती है। यदि वह दो दिन हो या न हो तो दूसरे दिन करे।
(९) धनत्रयोदशी (व्रतोत्सव) - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशीको
सायंकालके समय एक दीपकको तेलसे भरकर प्रज्वलित करे और गन्धादिसे पूजन करके अपने मकानके द्वारदेशमें अन्नकी ढेरीपर रखे। स्मरण रहे वह दीप रातभर जलते रहना चाहिये, बुझना नहीं चाहिये।
रूपचतुर्दशी (बहुसम्मत) - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशीकी
रात्रिके अन्तमें-जिस दिन चन्द्रोदयके समय चतुर्दशी हो उस दिन प्रभात समयमें दन्तधावन आदि करके 'यमलोकदर्शना-भावकामोऽहमभ्यंगस्नानं करिष्ये ।' यह संकल्प करे और शरीरमें तिलके तेल आदिका उबटन या मर्दन करके हलसे उखड़ी हुई मिट्टीका ढेला, तुम्बी और अपामार्ग (ऊँगा)- इनको मस्तकके ऊपर बार-बार घुमाकर शुद्ध स्नान करे। यद्यपि कार्तिकस्नान करनेवालोंके लिये 'तैलाभ्यंगं तथा शय्यां परान्नं कांस्यभोजनम् । कार्तिके वर्जयेद् यस्तु परिपूर्णव्रती भवेत् ॥' के अनुसार तैलाभ्यंग वर्जित किया है, किंतु 'नरकस्य चतुर्दश्यां तैलाभ्यंगं च कारयेत् । अन्यत्र कार्तिकस्नायी तैलाभ्यंगं विवर्जयेत् ॥' के आदेशसे नरकचतुर्दशी या (रूपचतुर्दशी) को तैलाभ्यंग करनेमें कोई दोष नहीं। यदि रूपचतुर्दशी दो दिनतक चन्द्रोदयव्यापिनी
हो तो चतुर्दशीके चौथे प्रहरमें स्नान करना चाहिये। इस व्रतको चार दिनतक करे तो सुख-सौभाग्यकी वृद्धि होती है।
(१२) हनुमज्जन्म-महोत्सव
नरकचतुर्दशी (लिंगपुराण) - यह भी इसी दिन होती है। इसके निमित्त चार बत्तियोंके दीपकको प्रज्वलित करके
पूर्वाभिमुख होकर 'दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया। चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये ॥' इसका उच्चारण करके दान करे। इस अवसरमें (आतिशबाजी आदिकी बनी हुई) प्रज्वलित उल्का लेकर 'अग्निदग्धाश्च ये जीवा येऽप्यदग्धाः कुले मम। उज्ज्वलज्योतिषा दग्धास्ते यान्तु परमां गतिम् ॥' से उसका दान करे तो उल्का आदिसे मरे हुए मनुष्योंकी सद्गति हो जाती है।
दीपावली (व्रतोत्सव) - लोकप्रसिद्धिमें प्रज्वलित दीपकोंकी पंक्ति लगा देनेसे 'दीपावली' और स्थान-स्थानमें मण्डल बना देनेसे 'दीपमालिका' बनती है, अतः इस रूपमें ये दोनों नाम सार्थक हो जाते हैं। इस प्रकारकी दीपावली या दीपमालिका सम्पन्न करनेसे 'कार्तिके मास्यमावास्या तस्यां
दीपप्रदीपनम्। शालायां ब्राह्मणः कुर्यात् स गच्छेत् परमं पदम् ॥' के अनुसार परमपद प्राप्त होता है। ब्रह्मपुराणमें लिखा है कि 'कार्तिककी अमावास्याको अर्धरात्रिके समय लक्ष्मी महारानी सद्गृहस्थोंके मकानोंमें जहाँ-तहाँ विचरण करती हैं। इसलिये अपने मकानोंको सब प्रकारसे स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली अथवा दीपमालिका बनानेसे लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उनमें स्थायीरूपसे निवास करती हैं। इसके सिवा वर्षाकालके किये हुए दुष्कर्म (जाले, मकड़ी, धूल-धमासे और दुर्गन्ध आदि) दूर करनेके हेतुसे भी कार्तिकी अमावास्याको दीपावली लगाना हितकारी होता है। यह अमावास्या प्रदोषकालसे आधी राततक रहनेवाली श्रेष्ठ होती है। यदि वह आधी राततक न रहे तो प्रदोषव्यापिनी लेना चाहिये।
(१९) लक्ष्मीपूजन - कार्तिक कृष्ण अमावास्या (दीपावलीके दिन) प्रातः स्नानादि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर 'मम सर्वापच्छान्ति-पूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरु ज्यादिसकलशुभफलप्राप्त्यर्थं गजतुरगरथराज्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्यर्थम् इन्द्रकुबेरसहित श्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।' यह संकल्प करके दिनभर व्रत रखे और सायंकालके समय पुनः स्नान करके पूर्वोक्त प्रकारकी 'दीपावली', 'दीपमालिका' और 'दीपवृक्ष' आदि बनाकर कोशागार (खजाने)- में या किसी भी शुद्ध, सुन्दर, सुशोभित और शान्तिवर्द्धक स्थानमें वेदी बनाकर या चौकी-पाटे आदिपर अक्षतादिसे अष्टदल लिखे और उसपर लक्ष्मीका स्थापन करके 'लक्ष्म्यै नमः', 'इन्द्राय नमः' और 'कुबेराय नमः' - इन नामोंसे तीनोंका पृथक् - पृथक् (या एकत्र) यथाविधि पूजन करके 'नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया। या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात् ॥' से 'लक्ष्मी' की; 'ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः । शतयज्ञाधिपो
देवस्तस्मा इन्द्राय ते नमः ।।' से 'इन्द्र' की और ' धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च। भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः ।।' से 'कुबेर' की प्रार्थना करे। पूजनसामग्रीमें अनेक प्रकारकी उत्तमोत्तम मिठाई, उत्तमोत्तम फल-पुष्प और सुगन्धपूर्ण धूप-दीपादि ले और ब्रह्मचर्यसे रहकर उपवास अथवा नक्तव्रत करे।
शुक्लपक्ष
(१) गोवर्धनपूजा (हेमाद्रि)- दीपावलीके दूसरे दिन प्रभातके समय मकानके द्वारदेशमें गौके गोबरका गोवर्धन बनाये। शास्त्रमें उसको शिखरप्रयुक्त, वृक्ष-शाखादिसे संयुक्त और पुष्पादिसे सुशोभित बनानेका विधान है; किंतु अनेक स्थानोंमें उसे मनुष्यके आकारका बनाकर पुष्पादिसे भूषित करते हैं। चाहे जैसा हो, उसका गन्ध-पुष्पादिसे पूजन करके 'गोवर्धन धराधार गोकुल-त्राणकारक । विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ॥' से प्रार्थना करे। इसके पीछे भूषणीय गौओंका आवाहन करके उनका यथाविधि पूजन करे और 'लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता। घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।'
यमद्वितीया - कार्तिक शुक्ल द्वितीयाको यमका पूजन
किया जाता है, इससे यह 'यमद्वितीया' कहलाती है। इस दिन वणिक्-वृत्तिवाले व्यवहारदक्ष वैश्य मसिपात्रादिका पूजन करते हैं, इस कारण इसे 'कलमदानपूजा' भी कहते हैं और इस दिन भाई अपनी बहिनके घर भोजन करते हैं, इसलिये यह 'भइया दूज' नामसे भी विख्यात है। हेमाद्रिके मतसे यह द्वितीया मध्याह्नव्यापिनी पूर्वविद्धा उत्तम होती है। स्मार्तमतमें आठ भागके दिनके पाँचवें भागकी श्रेष्ठ मानी है और स्कन्दके कथनानुसार अपराह्णव्यापिनी अधिक अच्छी होती है। यही उचित है। व्रतीको चाहिये कि प्रातः स्नानादिके अनन्तर कर्मकालके समय अक्षतादिके अष्टदलकमलपर गणेशादिका
स्थापन करके 'मम यमराजप्रीतये यमपूजनम् - व्यवसाये व्यवहारे वा सकलार्थसिद्धये मसिपात्रादीनां पूजनम् - भ्रातुरायुष्यवृद्धये मम सौभाग्यवृद्धये च भ्रातृपूजनं च करिष्ये।' यह संकल्प करके गणेशजीका पूजन करनेके अनन्तर यमका, चित्रगुप्तका, यमदूतोंका और यमुनाका पूजन करे तथा ' धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज ।
पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते ॥'
यमस्वसर्नमस्तेस्तु यमुने लोक पूजते !वरदा भव मे नित्यं सूर्य पुत्र नमोस्तुते इस मंत्र से यमुना जी की वंदना करे उसके बाद
बहिनको चाहिये कि वह भाईको शुभासनपर बिठाकर उसके हाथ-पैर धुलाये। गन्धादिसे उसका पूजन करे और दाल, भात, फुलके, कढ़ी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा लड्डू, जलेबी, घेवर आदि यथासामर्थ्य उत्तम पदार्थोंका भोजन कराये और 'भ्रातस्तवानुजाताहं भुङ्क्ष्व भक्तमिमं शुभम् । प्रीतये यमराजस्य यमुनाया विशेषतः ।।' से उसका अभिनन्दन करे। इसके बाद भाई बहिनको यथासामर्थ्य अन्न-वस्त्र-आभूषण और सुवर्ण-मुद्रादि द्रव्य देकर उससे शुभाशिष प्राप्त करे।.... यदि सहजा (सगी) बहिन न हो तो पितृव्य-पुत्री (काकाकी कन्या), मातुल-पुत्री (मामाकी बेटी) या मित्रभगिनी (मित्रकी बहिन) -इनमें जो हो उसके यहाँ भोजन करे। यदि यमद्वितीयाको यमुनाके किनारेपर बहिनके हाथका बनाया भोजन करे तो उससे भाईकी आयुवृद्धि और बहिनके अहिवात (सौभाग्य) की रक्षा होती है
🙏🏻जयश्रीमन्नारायण 🙏🏻
पं. नवल किशोर भार्गव
मो.नं.9981068449