सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को दो बड़े मामलों की सुनवाई करते हुए अहम फैसले सुनाए। एक तरफ जहां मस्जिद में नमाज पर फैसला सुनाते हुए इसे बड़ी पीठ के पास भेजने से शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने इनकार किया तो वहीं दूसरी तरफ अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू किए जाने की बात कही।
वहीं दूसरी तरफ, विवाहेतर कानून की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने व्यभिचार के लिए दंड का प्रावधान करने वाली धारा को सर्वसम्मति से असंवैधानिक घोषित किया। न्यायमूर्ति मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति डी. वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि व्यभिचार के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, ''हम विवाह के खिलाफ अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं। अलग से अपना फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने धारा 497 को पुरातनपंथी कानून बताते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर के फैसले के साथ सहमति जतायी।
उन्होंने कहा कि धारा 497 समानता का अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करती है।