गांव में बाल विवाह हुआ तो स्थानीय अमले पर होगी कार्यवाही


विवाह पत्रिका पर प्रकाशक को लिखना होगा बर-बधू की उम्र 

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समाज में अनेक ऐसी दुष्प्रथाएं प्रचलित है, जिन्हें मिटाना बेहद जरूरी है,बाल विवाह एक ऐसी ही सामाजिक बुराई है,जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आती है। बाल विवाह बच्चों के विकास में सबसे बड़ा अवरोध है, लेकिन इस सामाजिक अपराध को बिना सामुदाय के सहयोग के मिटाया जाना संभव नहीं है। इस बुराई को मिटाने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी को ठीक से निभाना होगा, कर्तव्यों का ठीक से पालन नहीं करने पर बाल विवाह का सहयोगी मानकर उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी। जिले को बाल विवाह के कलंक से मुक्त करने के लिये कलेक्टर अनुग्रहा पी ने अधिकारियों के साथ सामुदायिक जबाबदेही को निश्चित करते हुए एक आदेश जारी किया है।
   कलेक्टर ने जारी आदेश में गांव या वार्ड में बाल विवाह होने पर उस क्षेत्र की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, आशा कार्यकर्ता, स्कूल टीचरों, हल्का पटवारी, पंचायत सचिव एवं ग्राम कोटवार आदि की जिम्मेदारी तय की गई है। आदेश में स्पष्ट उल्लेख है कि अपने क्षेत्राधिकार में बाल विवाह न होने देना स्थानीय आमले की जिम्मेदारी है। बाल विवाह के आयोजनों को रोकने के लिये सभी आवश्यक उपाय किये जाने के बाद भी यदि संबंधित व्यक्ति उनकी बातों को गंभीरता से ना लेने पर आयोजन के पूर्व पुलिस व प्रशासन को सूचित करें, जिससे उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सके। कलेक्टर ने चेतावनी दी है यदि बाल विवाह की सूचना स्थानीय अमले के बजाय किसी अन्य माध्यम से प्राप्त होती है या बाल विवाह हो जाता है, तो संबंधित अमले को बाल विवाह का सहयोगी मानकर कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही की जाएगी।
’बाल विवाह बच्चों के साथ क्रूरता है’
   बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 में बाल विवाह का अनुष्ठान करना, कराना एवं उसमें किसी भी प्रकार का सहयोग करना दंडनीय अपराध माना गया है। इसके लिए कानून में 2 वर्ष की सजा एवं एक लाख रूपये अर्थदंड का प्रावधान किया है। संशोधित किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 में बाल विवाह को बच्चों के साथ क्रूरता मानते हुए 3 वर्ष की सजा एवं एक लाख रूपये अर्थदंड का प्रावधान किया गया है। बाल विवाह के लिये आयोजक के साथ ही उसमें किसी भी प्रकार के सहयोग, प्रोत्साहन देने वालों के साथ ही सम्मलित होने वालों को भी दोषी माना गया है। बाल विवाह की जानकारी होने पर चाइल्ड लाइन नम्बर 1098 पर सूचना देकर उसे रूकवाया जा सकता है।
’निगरानी समिति का किया गठन’
   प्रदेश को बाल विवाह रहित बनाने की दिशा में अनेकों प्रयासों के बावजूद भी बाल विवाहों का बड़ी संख्या में अनुष्ठान होना गंभीर विषय है। चौथे राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार आज भी प्रदेश में 30 प्रतिशत बालिकाओं एवं 39 प्रतिशत बालकों के विवाह तय आयु से पूर्व हो रहे है। यह स्थिति सभ्य समाज के मुंह पर एक तमाचा है। इस बुराई को मिटाने के लिये प्रत्येक विकासखंड स्तर पर संबंधित एसडीएम की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति का गठन किया गया है, जिसमें एसडीओपी, तहसीलदार, खंड शिक्षा अधिकारी, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर, परियोजना अधिकारी महिला बाल विकास एवं संबंधित सेक्टर की सुपरवाइजर को शामिल किया गया है। यह समिति विकास खंड में बाल विवाह के आयोजनों की रोकथाम के लिये सभी आवश्यक प्रयास करेगी।समिति अपने सूचनातंत्र विकसित कर होने वाले आयोजनों को निष्क्रिय करेगी। संबंधित परियोजना के परियोजना अधिकारियों को नोडल अधिकारी नामांकित किया गया है।
’सेवा प्रदाता अपराध में सहभागी न बनें’
    सभी सेवा प्रदाता (हलवाई ,टेंट ,लाइट, बैंड, पंडित, मौलवी, मैरिज गार्डन, विवाह पत्रिका प्रकाशक इत्यादि) ‘‘बाल विवाह नहीं है’’ यह सुनिश्चित करने के पश्चात ही अपनी सेवाएं दे अन्यथा उन्हें भी बाल विवाह में सहायक मानकर कार्यवाही की जाएगी। शासकीय एवं अशासकीय सामूहिक विवाह आयोजन स्थलों पर बाल विवाह निषेध का निर्धारित प्रारूप में बोर्ड प्रदर्शित किया जाना आवश्यक होगा। समस्त मैरिज गार्डन संचालक आयोजन परिसर के दृश्य भाग में कम से कम दो स्थानों पर श्बाल विवाह निषेध का बोर्ड प्रदर्शित करेंगे। प्रिंटिंग प्रेस संचालक विवाह पत्रिका प्रकाशन से पूर्व वर वधू के उम्र के प्रमाण आवश्यक रूप से प्राप्त करें। वर की आयु 21 वर्ष एवं वधू की आयु 18 वर्ष पूर्ण होने पर ही पत्रिका का प्रकाशन करें तथा पत्रिका के नीचे छोटे अक्षरों में अंकित करेंगे कि वर-वधू के उम्र के लिए गए है। प्रत्येक ग्राम सभा की बैठक में बाल विवाह के दुष्परिणामों को बताते हुए बाल विवाह करने के लिए जन समुदाय को बाल विवाह का प्रतिकार करने के लिए प्रेरित किया जाए। स्कूलों में बालक-बालिकाओं को बाल विवाह का विरोध करने के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया जावे तथा सूचना तंत्रों को विकसित किया जावे। यह आदेश लोक हित से जुड़ा होकर विशाल जनसमुदाय पर समान रूप से प्रभावित होगा तथा इस आदेश की तामील प्रत्येक व्यक्ति या संस्थान को कराया जाना संभव नहीं है। अतः मीडिया में प्रकाशन ही आदेश की तामील समझा जाएगा।
’बाल विवाह का शुन्यीकरण’
   महिला एवं बाल विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी ओपी पांडेय ने बताया कि जिन बालक बालिकाओं के बाल विवाह पूर्व में हो चुके हैं, यदि वे बालक बालिका अपना बाल विवाह शून्य (निरस्त) कराना चाहें तो इसके लिए भी कानून में प्रावधान किए गए। पीड़ित वयस्क होने के पहले या बाद में भी अपने बाल विवाह के शुन्यीकरण हेतु न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकता है। यदि पीड़ित बालक या बालिका वयस्क होने से पहले अपना विवाह को रद्द कराना चाहे तो वह महिला एवं बाल विकास विभाग में आवेदन कर सकता है।

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