कोलारस-पांच दिवसीय दीपावली महोत्सव की तैयारियां बैसे तो कनागतो से प्रारंभ हो जाती है किन्तु काम काजी लोग व्यस्थता के कारण त्यौहार के समय ही साफ सफाई से लेकर दीपावली की तैयारी कर पाते है। इस बार वारिश के लेट प्रारंभ होने तथा विलम्ब से मानसून के निकलने के कारण दीपावली की तैयारियों में लोगो को वारिश के कारण काफी परेशानी का सामना करना पडा है। नवदुर्गाे तक वारिश होने के कारण साफ-सफाई से लेकर रंगाई पुताई नवरात्री के पूर्ण होने के बाद प्रारंभ हो सके जो कि अभी तक जारी है। पांच दिवसीय दीपोत्सव के पर्व में मात्र तीन दिन शेष बचे है। ऐसे में लोग सफाई के कार्य में जुटे हुये है। ठीक तीन दिन बाद शुक्रवार को दीपोत्सव का पहला दिन धनतेरस के रूप में मनाया जायेगा। इस दिन लोग बर्तन, सोना चांदी, मशीनरी इत्यादी का क्रय करते है। साथ ही लोग घरो में धन के देवता कुवेर जी की पूजा अर्चना भी करते है। इसके अगले दिन शनिवार को रूप चर्तुदश यानि कि नर्क चौदस को लोग छोटी दीपावली के रूप में मनाते है। इस दिन आकर्षक बस्त्र इत्यादी पहनकर पूजन अर्चन करने से सुंदरता में निखार आती है। इसके अगले दिन दीपावली का मुख्य पर्व दीपोत्सव के रूप में मनाया जायेगा। इस दिन भगवान श्रीराम के अयोध्या लोटने की खुशी में माता लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी एवं मां सरस्वती की पूजा करने की परम्परा है। इस दिन को हम दीपोत्सव के मुख्य त्यौहार के रूप में मनाते है। इसके अगले दिन सोमवार को गोवर्धन पूजा का महत्व है भगवान श्री $कृ ष्ण जी ने स्वयं गिर्राज जी पर्वत पर विराजमान होकर स्वयं की पूजा करवाई थी। तथा वृज बासियो को जल प्रलय से बचाया था। तभी से बृज से लेकर समूचे वैष्णव, सनातन सम्प्रदाय के लोग दीपावली के अगले दिन घरो में गोवर के गिर्राज जी पर्वत बना कर भगवान श्री कृष्ण के रूप में उनकी पूजा करते है। इस दिन से 15 दिन यानि कि कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली तक अन्नकूट महोत्सव जारी रहते है। दीपोत्सव के पांचवे दिन बहने अपने भाई के माथे पर मंगल तिलक लगाकर भाईयो से रक्षा का बचन मांगती है। दीपोत्सव के पांचवे दिन पडने बाले भाई दौज पर्व की परम्परा का प्रारंभ यमुना नदी महारानी द्वारा इस दिन यम को तिलक लगा कर उन्हे भाई मानकर दुष्टïो से रक्षा का बचन लिया था तभी से दीपोत्सव के पांचवे एवं अंतिम दिन भाई दौज के पर्व मनाने की परम्परा प्रारंभ हुई है। बैष्णव-सनातन धर्मालम्बी लोगो का सबसे बडा पर्व दीपोत्सव होता है जिसकी तैयारियां करीब एक माह से प्रारंभ होकर दीपोत्सव तक जारी रहती है। कुल मिलाकर दीपोत्सव सबसे बडे पर्व के रूप में कार्तिक मास के प्रारंभ से कार्तिक पूर्णिमा तक जारी रहता है इस बीच ऋषि मुनी एवं भक्तगा कार्तिक मास में सुबह के समय स्नान करके बृत उपवास रखते हुये लक्ष्मीनारायण भगवान को कार्तिक मास की कथा का श्रवण कराने के साथ कार्तिक मास का त्यौहार एक माह तक मनाने की परम्परा है।
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