शिक्षा व्यवस्था की अव्यवस्थाएँ और जनजागरण की आवश्यकता - Shivpuri

भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक राष्ट्र में शिक्षा को सबसे बड़ा अधिकार और कर्तव्य माना गया है संविधान ने प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है  ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी कई ग्रामीण एवं अर्ध - शहरी क्षेत्रों में विद्यालयों की स्थिति अत्यंत दयनीय है।

प्रमुख समस्याएँ

बिना मान्यता एवं मैपिंग के कक्षाएँ
अनेक विद्यालय बिना उचित मान्यता और सरकारी मैपिंग के चल रहे हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि बच्चों की पढ़ाई आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज तक नहीं होती और उनका भविष्य अधर में लटका रहता है प्राचार्य की अनुपस्थिति कई विद्यालय ऐसे हैं जहाँ नियमित प्राचार्य तक नहीं होते। ऐसे में विद्यालय का संचालन बिना दिशा और निगरानी के होता है।

विद्यालय वाहन व्यवस्था की दुर्दशा
बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए जो वाहन इस्तेमाल किए जाते हैं उनमें सुरक्षा मानकों की पूरी तरह अनदेखी की जाती है बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह ठूँसकर बैठाया जाता है, जिससे किसी भी समय बड़ी दुर्घटना हो सकती है।

शारीरिक दंड और मानसिक शोषण
आज भी कई शिक्षक बच्चों को जानवरों की तरह मारते-पीटते हैं। यह न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि बच्चे के मानसिक विकास और आत्मविश्वास पर भी गहरा आघात करता है।

अपात्र शिक्षकों की नियुक्ति
शिक्षा आयोग के मानकों की अनदेखी करते हुए कई विद्यालयों में अपात्र और अनुभवहीन व्यक्तियों को शिक्षक बना दिया गया है। परिणामस्वरूप शिक्षा की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है।

प्रशासन और साठगांठ की समस्या
सबसे गंभीर मुद्दा यह है कि स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग की मिलीभगत के कारण इन अनियमितताओं पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। निरीक्षण महज़ औपचारिकता बनकर रह गया है।

क्यों ज़रूरी है जनजागरण?
यदि समाज इन समस्याओं पर चुप बैठा रहा, तो आने वाली पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। हमें यह समझना होगा कि—
शिक्षा सिर्फ विद्यालय की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरे समाज की है।
बच्चों की सुरक्षा और गुणवत्ता युक्त शिक्षा हर माता-पिता का अधिकार है।
गलतियों और भ्रष्टाचार पर आवाज़ उठाना नागरिक कर्तव्य है।

अभिभावकों को चाहिए कि वे नियमित रूप से विद्यालयों की स्थिति की निगरानी करें सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों को मिलकर ऐसे विद्यालयों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए प्रशासन को लिखित शिकायतें और ज्ञापन देकर कार्रवाई के लिए बाध्य करना चाहिए बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर शिक्षा जन-जागरण अभियान चलाना चाहिए।

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