मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता 11 दिसम्बर की रात्री को ही तय हो गया था। जब मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया से बहुमत न आने पर सरकार नही बनाने की घोषणा कर दी थी। 11 दिसम्बर की रात्री को ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश में सरकार बनाने का पत्र प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बैन पटेल को सौंप कर मध्य प्रदेश में गठबंधन के साथ कांग्रेस की सरकार बनाने का रास्ता साफ कर चुके थे मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुये कई दिन बीत चुके है। प्रदेश के मुख्यमंत्री पहले अपने ही पार्टी के लोगो के दवाब में इस्थानांतरण की सूची जारी करने में लगे हुये थे जिसमें आईएस, आईपीएस, राज्य प्रशासनिक सेवा से लेकर अन्य अधिकारियो के स्थानांतरण के आदेश जारी करने में लगे हुये थे। इसी बीच निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची में नाम जोडने एवं हटाने को लेकर निर्वाचन कार्य में लगे अधिकारी कर्मचारियो के स्थानांतरण न करने का आदेश निकाल कर कुछ समय के लिए स्थानांतरण की सूचीयो पर विराम अवश्य लगा दिया है। किन्तु मंत्री मण्डल गठन के तीन दिन बाद भी बिना विभाग के काम करने बाले मंत्रीयो से यह स्पष्ट होता है कि अपनो से लेकर गैरो का मुख्यमंत्री कमलनाथ पर कितना दवाब है कि वह मंत्री मण्डल गठन के बाद उन्हे विभाग तक आवंटन नही कर पाये है। इतना ही नही जिलो में प्रभारी मंत्री से लेकर अन्य पदो पर नियुक्तियो का मामला भी अधर में लटकने से यह स्पष्ट होता है कि अपने ही पार्टी के लोगो को मंत्री न बना पाने तथा सहयोगियो को मंत्री मण्डल में स्थान न दे पाने का दर्द उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रेसवार्ता के दौरान वयां कर चुके है। मतलव साफ है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के ऊपर अपनी ही पार्टी से लेकर सहयोगियो का कितना दवाब है।
यही हाल रहा तो प्रदेश में लोकसभा चुनाव तक सरकार चलाना होगा कठिन
मध्य प्रदेश में कांग्रेस द्वारा गठबंधन की सरकार बनाये हुये अभी कुछ ही दिन बीते है किन्तु विरोधी तो विरोधी सहयोग करने बाले विधायको से लेकर अपनी ही पार्टी के नेता एवं विधायक मंत्री मण्डल गठन के बाद विरोध में आ खडे हुये है। इसके एक नही अनेक उदाहरण है जिनसे लगता है कि प्रदेश में गठबंधन की कांग्रेस सरकार लोकसभा चुनाव तो दूर की बात है कहीं उसके पहले ही विरोधियो से लेकर अपनो के दबाव में कमलनाथ इस्तीफा पार्टी आलाकमान को न सौप दे। क्योकि मंत्री मण्डल में स्थान न मिलने के कारण सहयोगी दल के नेता अखिलेश यादव से लेकर मुरैना से गुर्जर विधायक के समर्थक एवं पिछोर से केपी सिंह विधायक के समर्थक सार्वजनिक रूप से मंत्री मण्डल में शामिल न होने का विरोध जता चुके है। इसके अलावा बसपा से लेकर अन्य विधायक भी मंत्री मण्डल में शामिल होने को लेकर दवाब बना रहे है। जिसके चलते तीन दिन बाद भी 28 मंत्री विना विभाग के कार्य कर रहे है। इतना ही नही जिले में प्रभारी मंत्री बनाने से लेकर निगम मण्डल अध्यक्ष उपाध्यक्षो की नियुक्ति में अपने लोगो को शामिल करने का दबाव मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री कमलनाथ के ऊपर लगातार दिन प्रति दिन बढता ही चला जा रह है। जिससे ऐसा लगता है मानो मध्य प्रदेश में गठबंधन एवं दवाब की सरकार चलाने बाले मुख्यमंत्री कमलनाथ कहीं लोकसभा चुनाव से पूर्व ही इस्तीफा न सौंप दे। यदि कमलनाथ इस्तीफा सौंपते है कांग्रेस के पास दूसरे विकल्प के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम बचता है किन्तु गठबंधन एवं अपने ही दल दबाव मेेेे सरकार चलाना शायद सिंधिया भी लायक नही करेगे ऐसी स्थिति में लोकसभा चुनाव से पूर्व ही कहीं प्रदेश में पुन: भाजपा की सरकार न बन जाये इसको लेकर भी राजनैतिक लोग विचार मंथन करने में जुटे हुये है।
Tags
मध्यप्रदेश