कांग्रेस, बसपा जुटे प्रचार में, भाजपा जुटी टक्कर देने बाले उम्मीदवार की तलाश में


हरीश भार्गव - शील कुमार यादव -गुना लोकसभा क्षेत्र की हम बात करें तो लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत शिवपुरी जिले से तीन विधानसभा, अशोक नगर जिले से तीन विधानसभा तथा गुना जिले से दो विधानसभा मिला कर कुल आठ विधानसभा क्षेत्रो को जोडकर गुना लोकसभा क्षेत्र बनाया गया। जहां आगामी 12 मई को मतदान होना है मतदान में करीब डेढ माह का समय बचा है। जबकि चुनाव को लेकर इस क्षेत्र के मतदाताओ से जब चर्चा की गई तो क्षेत्र के मतदाताओ में चुनाव को लेकर कोई रूचि दिखाई नही दी। जनता से ज्यादा सक्रिय प्रशासन दिखाई दे रहा है। जिसने होडिंग्स बैनर हटाकर तथा शस्त्र जमा कर आचार संहिता का पालन किया इसके अलावा चुनाव कार्य में लगने बाले अधिकारी कर्मचारियो की टे्रनिंग से प्रशासन में चुनाव को लेकर चहल कर्मी दिखाई अवश्य दे रही है। किन्तु जनता में लोकसभा चुनाव को लेकर कोई खाश रूझान दिखाई नही दे रहा है। 


भाजपा से कमजोर प्रत्याशी आते  देख सिंधिया जुटे उत्तर प्रदेश के चुनाव में
गुना लोकसभा क्षेत्र के लिए आने बाली 12 मई को मतदान होना है मतदान में करीब डेढ माह का समय बचा है। कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया का चुनाव लडना तय है। सिंधिया को पार्टी ने उत्तर प्रदेश के एक क्षेत्र का प्रभार चुनाव जिताने के लिए सौंपा है। सिंधिया भी पार्टी के आदेश पर गुना लोकसभा क्षेत्र से ज्यादा उत्तर प्रदेश में प्रचार प्रसार की कमान संभाले हुये है। उसके पीछे सबसे बडा कारण गुना लोकसभा सीट में भाजपा अभी तक कमजोर प्रत्याशियो को चुनाव मैदान मे ंउतारती चली आ रही है। जिसको सांसद सिंधिया भली भांति भांप चुके है। इसके अलावा क्षेत्र की जनता का रूझान सिंधिया के प्रति होने के कारण सिंधिया अपने क्षेत्र से ज्यादा समय पार्टी के आदेश पर उत्तर प्रदेश में दे रहे है। अभी तक जिस प्रकार लोकसभा के चुनावो में विजयराजे सिंधिया के बाद भाजपा ने जितने भी उम्मीदवार उतारे है वह चुनाव जीतना तो दूर की बात है सिंधिया परिवार को हजारो में लाने में ही पूरी ताकत झोंक कर एक एक चुनाव हार कर विदा हो लिए। भाजपा ने जिस प्रकार भोपाल में दिग्विजय सिंह को टक्कर देने के लिए मजबूत उम्मीदवार की तलाश जारी है यदि उसी तर्ज पर गुना में मजबूत प्रत्याशी उतारा जाता है तो सिंधिया को चुनाव के दौरान आने की अवश्यकता है वरना गुना लोकसभा क्षेत्र में महल का भय प्रभाव है कि नामांकन फार्म भरने के बाद विजयराजे सिंधिया प्रचार में न आने के बाद भी चुनाव जीत गई थी। यदि भाजपा अभी तक जिस प्रकार उम्मीदवार उतारे गये थे। उसी तरह उम्मीदवार उतारती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया नामांकन फार्म भरने के बाद प्रचार करने न भी आये तो उनकी धर्म पत्नि एवं प्रभारी मंत्री से लेकर कांग्रेस के विधायक एवं कार्यकर्ता ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को नामांकन फार्म भरने के बाद बिना आये ही चुनाव जिताने की स्थिति में दिखाई दे रहे है। 


बसपा प्रत्याशी किरार मुकावले में रहेगे अथवा जमानत के लिए करेगे संघर्ष
गुना लोकसभा क्षेत्र से बसपा द्वारा कई माह पूर्व किरार लोकेन्द्र सिंह राजपूत को अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। बसपा द्वारा किरार लोकेन्द्र सिंह को उम्मीदवार बनाने के बाद लोकेन्द्र सिंह अपने स्तर से प्रचार प्रसार में जुटे हुये है। लोकेंन्द्र सिंह किरार समाज से आते है किरार समाज का वोट बैंक शिवराज सिंह के नाम पर भाजपा से जुडा हुआ है किरार लोकेन्द्र सिंह अपने समाज यानि कि किरार समाज का वोट बैंक भाजपा से तोडकर अपने पक्ष में लाने में कामयाब हो पाते है तो भाजपा के लिए कडी चुनौती कांग्रेस से मिल सकती है। साथ ही लोकेन्द्र सिंह अपने समाज के अलावा बसपा का मूल वोट बैंक एससी वर्ग को अपनी ओर पूर्ण रूप से शामिल करने में कामयाब हो पाते है तभी लोकेन्द्र सिंह चुनाव मैदान में सक्रियता के साथ दिखाई देगे और यदि किरार समाज का वोट बैंक शिवराज सिंह के नाम पर भाजपा के साथ बना रहा एवं एससी वर्ग  सिंधिया के नाम पर कांग्रेस केे पक्ष में चला गया तो किरार लोकेन्द्र सिंह के सामने चुनाव मैदान में जमानत बचाने के लिए संघर्ष करना पड सकता है। कुल मिला कर लोकेन्द्र सिंह किरार समाज के अलावा पिछडा वर्ग, एससी एसटी वर्ग का वोट अपने पक्ष में करने में सफल हुये तो मुकावला त्रिकोणीय हो सकता है। वरना किरार समाज का वोट यदि लोकेन्द्र सिंह को नही मिला तो लोकेन्द्र सिंह के सामने कडी चुनौती होगी। कुल मिला कर लोकेन्द्र सिंह किरार समाज का वोट अपने पक्ष में करके जितना नुकशान भाजपा को पहुंचा सकते है उससे कई ज्यादा नुकशान उनके चुनाव मैदान में आने से कांग्रेस को भी उठाना पड सकता है। क्योकि बसपा प्रत्याशी की अनुपस्थिति में एससी वर्ग का वोट कांग्रेस को मिलता रहा है। और यदि इस बार बसपा को एससी वर्ग का 50 प्रतिशत वोट भी मिलता है तो कांग्रेस के लोग जीत के लिए जो लाखो की उम्मीद पाले है उसमें बसपा प्रत्याशी पाला डालने का कार्य कर सकते है। कुल मिला कर बसपा प्रत्याशी किरार लोकेन्द्र सिंह के चुनाव मैदान में आने से भाजपा एवं कांग्रेस दोनो को ही बराबर का नुकशान झेलना पड सकता है। देखना है लोकेन्द्र सिंह चुनाव मैदान को रोचक बनाने में कितना कामयाब हो पाते है। 

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