दो लाख लोग अब शरणार्थी नहीं


डाल सकेंगे जम्मू कश्मीर में वोट

जम्मू। डोमिसाइल रूल में हुए संशोधनों ने अब ऐसे 2 लाख लोगों की जिंदगी को बदल दिया है जो बीते 70 सालों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। आजादी के बाद से अपने अधिकार के लिए भटक रहे वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी, वाल्मिकी दलित और गोरखा लोगों को अब राज्य के स्थायी निवासियों के रूप में जगह मिल सकती है। ये लोग अब जम्मू-कश्मीर में मतदान भी कर सकेंगे और इन्हें वो सभी अधिकार होंगे जो यहां के स्थानीय निवासियों को मिलते थे।
70 साल से शरणार्थियों के रूप में जीवन काट रहे वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी यहां अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में इनकी संख्या करीब 1 लाख के आसपास है। ये वो लोग हैं जो कि भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर में वापस लौट आए थे। अब इन्हें जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी होने के सर्टिफिकेट से लेकर सरकारी नौकरियों तक का लाभ मिल सकता है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक वेस्ट पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को अब तक लोकसभा चुनाव में वोट करने के अधिकार थे, लेकिन अब वह विधानसभा के चुनावों में भी वोट कर सकते हैं। वेस्ट पाकिस्तानियों की तरह 1957 में पंजाब के गुरदासपुर और अमृतसर से जम्मू-कश्मीर लाए गए वाल्मिकी समुदाय के लोग भी 6 दशक से अधिक समय से अपने अधिकारों के लिए जूझ रहे थे। इन लोगों को पंजाब से जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद ने इस वादे के साथ बुलाया था कि इन्हें राज्य में स्थायी निवासी का दर्जा और अन्य सुविधाएं मिलेंगी। सब दावों के बीच 62 साल से वादे सिर्फ कागजों पर रहे और ऐसे परिवार सिर्फ यहां सफाईकर्मी का काम करने को मजबूर भी रहे। कभी 200 परिवारों के रूप में आए वाल्मिकी समुदाय के इन लोगों की जनसंख्या करीब 50 हजार के आसपास है और यह जम्मू शहर के अलग-अलग इलाकों में रहते हैं। उपरोक्त सभी लोग अब संतोष व्यक्त कर सकतेे हैं कि उन्हें देर से ही सही, अंतत: नागरिक होने का हक मिल ही गया।

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