नवरात्रि में करें ये उपाय, मां आदिशक्ति की कृपा से जीवन में आएंगे चमत्कारी बदलाव

शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं अगले 9 दिनों तक देवी दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की विशेष पूजा-आराधना की जाएगी नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हुए मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा करने का विधान है।



शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा को लाल पताका अर्पित करें मान्यता है कि इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। साथ ही शारदीय नवरात्रि के दौरान शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन करें उन्हें खीर पूड़ी खिलाएं तथा लाल कपड़ा भेंट कर उन्हें ससम्मान विदा करें इससे आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इसके अलावा यदि आप अपने शत्रुओं से परेशान हैं, तो मां दुर्गा के मंदिर में जाकर उन्हें पीले फल और मिठाई का भोग लगाएं और पूजा स्थल पर पांच लौंग अर्पित करें।

नवरात्रि में मां दुर्गा को नहीं चढ़ानी चाहिए ये चीजें 

न चढ़ाएं ये फूल
नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा में लाल रंग के पुष्प का उपयोग किया जाता है। दुर्गा पूजा में कमल, गुड़हल, गुलाब, गेंदा के फूल चढ़ाए जाते हैं। इस दौरान ध्यान रखें कि कनेर, धतूरा और मदार के पुष्प भूल से भी न चढ़ाएं। 

अक्षत  
नवरात्रि के दौरान पूजन सामग्री में अक्षत यानी चावल का स्थान प्रमुख होता है। लेकिन नवरात्र पूजन में अक्षत के प्रयोग में ये सावधानी बरतनी चाहिए कि चावल के दाने टूटे न हों।

लहसुन-प्याज से बना भोग 
नवरात्रि के दौरान के आप जिस भोजन में देवी दुर्गा को भोग लगा रहे हैं, उसमें लहसुन और प्याज का प्रयोग बिल्कुल भी न करें। ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता है, क्योंकि लहसुन-प्याज को तामसिक प्रवृत्ति का भोज्य पदार्थ माना जाता है।

टूटा हुआ नारियल
नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए नारियल का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ध्यान रखें कि कलश स्थापना के लिए टूटा हुआ नारियल इस्तेमाल न करें। पूजा के लिए जटा वाले नारियल ही इस्तेमाल करें।
शारदीय नवरात्रि में जरूर करें दुर्गा स्तुति का पाठ
दुर्गा स्तुति 

दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये
ब्रम्हाद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छया कल्पिताः ।
नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः
कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणॉंल्लोके भवेद्दुर्गमान् ॥ १ ॥

त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान्
त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।
त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं
किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥ २ ॥

या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया
देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा ।
त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहास्थिता
भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥ ३ ॥

स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिनिचयैर्हीनं परं ब्रह्म यत्
त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।
सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-
स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥ ४ ॥

तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय-
स्तोयत्वेन भवेद्ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।
ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त-
च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥ ५ ॥

षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयः षट्शिवा-
स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।
तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके
त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥ ६ ॥
॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे वेदैः कृता दुर्गास्तुतिः सम्पूर्णा ॥

नवरात्रि में करें मां दुर्गा के इन मंत्रों का जाप  

1- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।


2- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।


3- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

4- नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ का जाप अधिक से अधिक अवश्य करें। 

5- पिण्डज प्रवरा चण्डकोपास्त्रुता।
प्रसीदम तनुते महिं चंद्रघण्टातिरुता।।
पिंडज प्रवररुधा चन्दकपास्कर्युत । 
प्रसिदं तनुते महयम चंद्रघंतेति विश्रुत।
  • - ज्योति प्रज्वलित करने से पहले संकल्प लें और मां के सामने दीप प्रज्वलित करें। 
  • - नवरात्रि में जलाई जाने वाली ज्योति को अनवरत नौ दिनों तक जलाया जाता है। इसलिए विशेष ध्यान रखें कि लौ बुझनी नहीं चाहिए।
  • - अखंड ज्योति जलाने के लिए गाय के शुद्ध घी का प्रयोग करें। 
  • - अखंड ज्योति को हमेशा किसी पटरे या चौकी पर ही रखकर जलाना चाहिए। कभी भी भूमि पर रखकर अखंड दीपक न जलाएं। 
  • - अखंड ज्योति की बाती हमेशा कलावा से बनाई जाती है। 
  • - अगर आपने अपने घर में अखंड ज्योति प्रज्वलित की है तो ध्यान रहे की घर को कभी भी अकेला न छोड़े। 
  • - नवरात्रि के समापन या फिर संकल्प पूरा होने के बाद दीपक को खुद ना बुझाएं। उसे ऐसे ही रहने दें। धीरे-धीरे उसे स्वतः ही बुझने दें।
नवरात्रि में देवी आराधना,कलश स्थापना और नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाने का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में हर पूजा-पाठ और शुभ कार्य का आरंभ दीप प्रज्वलित करके किया जाता है। दीप को प्रकाश का द्योतक माना गया है तो वही प्रकाश को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। दीप जलाने का मतलब होता है मन के अंधकार को दूर करके परमात्मा रूपी प्रकाश को अपने अंदर समाहित करना। इसलिए सबसे पहले दीपक प्रज्वलित किया जाता है।
 

नवरात्रि पर मां दुर्गा की पूजा-आराधना में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भक्तों के लिए बहुत ही शुभ और फलदायी माना गया है। मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तशती उल्लेख किया गया है। मां शक्ति की उपासना के लिए दुर्गा सप्तशती श्रेष्ठ ग्रंथ माना है। इसमें 700 श्लोक और 13 अध्याय है। जिसे तीन चरित्रों में बांटा गया है। पहले चरित्र में महाकाली,दूसरे चरित्र में महालक्ष्मी और तीसरे चरित्र में महा सरस्वती है। 

दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय 

1. प्रथम अध्याय : इस अध्याय में मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधि को भगवती की महिमा बताते हुए मधु कैटभ का प्रसंग

2. द्वितीय अध्याय : दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय में देवताओं के तेज से देवी मॉं का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध

3. तृतीय अध्याय : इस अध्याय में मां दुर्गा द्वारा सेनापतियों सहित महिषासुर का वध

4. चतुर्थ अध्याय : इंद्र समेत सभी देवी- देवताओं द्वारा देवी मां की स्तुति

5. पंचम अध्याय : देवी की स्तुति और चण्ड-मुण्ड के मुख से अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और फिर दूत का निराश लौटना

6. षष्ठम अध्याय : धूम्रलोचन- वध

7. सप्तम अध्याय : चण्ड-मुण्ड का वध

8. अष्टम अध्याय : रक्तबीज का वध का वर्णन

9. नवम अध्याय : विशुम्भ का वध

10. दशम अध्याय : शुम्भ का वध

11. एकादश अध्याय : सभी का वध करने के बाद देवताओं के द्वारा देवी की स्तुति,  देवी द्वारा देवताओं को वरदान देना

12. द्वादश अध्याय : देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य

13. त्रयोदश अध्याय : सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान

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