आज का प्रभु संकीर्तन सेवा का भाव सभी को रखना चाहिए। सेवा किसी भी रूप में हो अवश्य करनी चाहिए।कभी कभी सेवा करते समय कुछ त्रुटी भी हो सकती है तो हमारे मन में सेवा भाव है तो वह सभी धर्मो में सबसे ऊपर है। किसी रोगी की सहायता करके,किसी असाह्य की मदद करते रहना चाहिए।पढ़िए।
एक बार एक साधु अपने शिष्यों के साथ तपस्या के लिए जा रहे थे, रास्ते में अपने शिष्यों से ज्ञान, ध्यान, ब्रह्मचर्य और एकाग्रता की बातें कर रहे थे। सभी शिष्य गुरु के साथ चलते जा रहे थे और इन शिक्षाओं को ग्रहण कर रहे थे।
कई दिनों तक चलने के पश्चात उन्हें एक शांत नदी का किनारा मिला और सभी ने वहाँ विश्राम के लिए डेरा डाल दिया उस नदी के किनारे कोई गाँव था और उस गाँव की किसी स्त्री को नदी पार करनी थी उस स्त्री ने साधु महाराज से नदी पार करने के लिए सहायता मांगी, और साधु ने उसे सहारा देकर नदी पार करा दिया।
इसके बाद साधु अपने चेलों के साथ आगे बढे कुछ समय के पश्चात साधु को ऐसा महसूस हुआ कि उनके एक प्रिय चेले का व्यवहार थोड़ा बदल सा गया है, उन्होंने प्रेम से उस शिष्य से इसका कारण पूछा चेला तो जैसे भरा बैठा था, बोला आप स्वयं ब्रह्मचर्य की बात करते हैं और स्त्री का स्पर्श करने में आपको जरा भी लज्जा न हुई।
साधू महाराज उसकी बात प्रेम पूर्वक सुनते रहे फिर बोले, हे वत्स, उस स्त्री को तो मैं नदी किनारे ही छोड़ आया था तुम क्यों उसे बोझ की तरह दिन भर अपनी पीठ पर लादे लादे घूम रहे हो। शिष्य समझ गया की उससे भूल हो गयी है और उसने मर्म जान लिया कि सेवा भाव सभी धर्मों से ऊपर है, उसकी कोई तुलना नहीं।
जाकें हृदय भगति जसि प्रीति।
प्रभु तहँ प्रकट सदा तेहिं रीति।।
स्मरण रखें सेवा का कोई आधार नहीं इसमें केवल दूसरे की मदद की भावना होनी चाहिए।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
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