हम मनुष्य इस भौतिक जगत में किसी न किसी रूप में कष्ट भोगते हैं, परन्तु कष्ट भोगने वाले अनेक मनुष्यों में से कुछ ही ऐसे होते हैं जो वास्तव में यह जानने के जिज्ञासु हैं कि वे क्या हैं? और वे इस विषम स्थिति में क्यों डाल दिये गये हैं।
♦️ जब तक मनुष्य को अपने कष्टों के विषय में जिज्ञासा नहीं होती, तब तक वह यह नहीं समझ पाता कि वह कष्ट भोगना नहीं अपितु सारे कष्टों का हल ढूंढना चाहता है।
♦️ ब्रह्म सूत्र में इस जिज्ञासा को "ब्रह्म जिज्ञासा" कहा गया है।
▪️ मनुष्य के सारे कार्य कलाप तब तक असफल माने जाने चाहिए, जब तक वह "परब्रह्म" परमेश्वर के स्वभाव के विषय में जिज्ञासा न करे।
♦️ अतः जो लोग यह प्रश्न करना आरम्भ कर देते हैं कि वे क्यों कष्ट उठा रहे हैं, या वे कहाँ से आए हैं और मृत्यु के बाद कहाँ जायेंगे, वे ही श्रीमद् भगवद् गीता को समझने वाले सुयोग्य विद्यार्थी हैं।
♦️ निष्ठावान विद्यार्थी में भगवान के प्रति आदर भाव होना चाहिए। अर्जुन ऐसा ही विद्यार्थी था।
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