त्याग, तपस्या और संघर्ष से खड़ा हुआ ‘सहरिया क्रांति आंदोलन’ शोषण के विरुद्ध जंगल में उठी चेतना की ज्वाला - Shivpuri

शिवपुरी - _विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष_ देश की स्वतंत्रता के सात दशक बीतने के बाद भी अगर कोई समुदाय अपने वजूद, अधिकार और अस्तित्व के लिए जूझता रहे, तो यह सत्ता और व्यवस्था दोनों के लिए एक कलंक है। मध्यप्रदेश की धरती पर उगे जंगलों में सदियों से बसी सहरिया जनजाति ऐसी ही एक जातीय-सांस्कृतिक इकाई है, जिसे दशकों से दमन, शोषण, बंधुआगिरी और उपेक्षा ने जकड़ रखा था लेकिन जब हर तरफ से आशा की किरणें बुझ चुकी थीं तब अंधेरे को चीरकर निकला ‘सहरिया क्रांति आंदोलन’  एक ऐसी मशाल, जिसने शोषण की काली रात में संघर्ष का उजास भर दिया।

इस आंदोलन की नींव रखी पत्रकार संजय बेचैन ने  जिन्होंने न केवल कलम से लड़ाई लड़ी, बल्कि जमीन पर उतरकर हर गांव, हर घाटी में जाकर आदिवासियों को संगठित किया, उन्हें हक और हौसले की ताकत दी। उनके साथ रहे आदिवासी समाज के असल नायक  विजय भाई, अनिल आदिवासी, ऊधम भाई, औतार भाई जिन्होंने अपने खून-पसीने से आंदोलन को सींचा और जंगलों में दमन के खिलाफ बिगुल बजा दिया। यह कोई आंदोलन नहीं, बल्कि जमीनी क्रांति थी, जहां वे जमीनें जो वर्षों से दबंगों और रसूखदारों के कब्जे में थीं, एक-एक करके मुक्त होने लगीं। रसद माफिया बेनकाब हुए, प्रशासनिक मशीनरी को झुकना पड़ा, पुलिस थानों में आदिवासियों की फरियाद सुनी जाने लगी। जो थाने पहले उनके शोषकों की ढाल बने थे, उन्हें अब कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ा।

संजय बेचैन को चुप कराने के लिए उन पर लाठियां चलीं, तलवारें लहराईं, गोलियां दागी गईं। पर क्रांति रुकी नहीं बल्कि और तेज हुई। दिन-रात जंगलों में आंदोलन का परचम लहराने लगे साथी अजय आदिवासी, कल्याण आदिवासी, परमाल आदिवासी, भदोरिया आदिवासी, सोनू, राजेन्द्र आदिवासी, कमल सिंह, हजारी, मोहर सिंह, पातीराम, रत्ती बाबा,फ़ौजा बाबा गणेश आदिवासी  ये सब आंदोलन के सच्चे शिल्पकार रहे , जिन्होंने जंगल-जंगल घूमकर अन्याय की दीवारों को ढहाया कहीं बाबा का दमन तो कहीं ‘शेरा सरदार’ का आतंक सहरिया क्रांतिकारियों ने न केवल इन ताकतों को चुनौती दी, बल्कि उन्हें झुका दिया यह क्रांति जंगल की आग की तरह फैली, जिसने सत्ता और माफिया गठजोड़ की नींव हिला दी। सहरिया क्रांति ने केवल जमीन और अधिकार की लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध भी मोर्चा खोला शराबमुक्ति अभियान एक ऐतिहासिक कदम बना, जिसने न केवल मध्यप्रदेश, बल्कि राजस्थान और उत्तरप्रदेश तक के सहरिया गांवों को जागरूक किया लाखों युवा शपथ लेकर नशे से दूर हुए और आज आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। 

हर वर्ष 5 अगस्त को सहरिया क्रांति का स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष निकली रैली ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि भू-माफियाओं और दबंगों की नींद उड़ाने वाली साबित हुई। सहरिया क्रांति ने साफ कर दिया है कि आदिवासी अब चुप नहीं बैठेंगे, वे संगठित हैं, जागरूक हैं और अब हर साजिश का मुँहतोड़ जवाब देंगे। इस आंदोलन ने भगवान बिरसा मुंडा के आदर्शों को सजीव कर दिया है, जिन्होंने कभी कहा था "जंगल हमारा है, जमीन हमारी है, हम इससे पीछे नहीं हटेंगे।" यही आदर्श अब सहरिया क्रांति का नारा बन चुके हैं।
> *‘सहरिया क्रांति आंदोलन’ कोई साधारण आंदोलन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ है भारतीय आदिवासी चेतना का, जिसने व्यवस्था को चुनौती दी, अन्याय को बेनकाब किया और जंगल के हर कोने में आज़ादी की हुंकार भरी। यह आंदोलन हर उस शोषित के लिए प्रेरणा है जो अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहता है।और ये लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई  अब इतिहास लिखा जा रहा है, जंगलों की भाषा में*

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