कोलारस -- चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर पर मुनि श्री 108 मंगलसागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहाँ कि पिछले जन्मों के अच्छे कर्मो का फल जो वर्तमान जीवन में सुख के रूप में मिलता है जिसको हम पुण्य कहते है जिसका वास्तविक अर्थ अच्छे कर्म, शुभविचार' नेक कार्य है मुनि श्री ने कहाँ कर्म एक भौतिक पदार्थ है जो आत्मा से चिपक जाता है और आत्मा के गुणों को प्रभावित करता है जिससे जीवन के सुख - दुख और भविष्य तय होते है।
यह कोई अद्ध श्य शक्ति नही है बल्कि कूक्ष्मकणों का एक समूह जो जीव के मन-वचन एवं शरीर की क्रियाओं से आकर्षित होकर आत्मा से बध जाते है जैन धर्म मे आठ कर्म होते है जिनमें ज्ञानवरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अंतराय है इन आने कर्म जीवों को संसार के बंधन में बॉधते हैं और इनका क्षय ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है क्योंकि पिछले जन्मों का इस जन्म पर कर्मो के अनुसार प्रभाव पड़ता है अच्छे कर्मो से अच्छे कुल में जन्म लेता है पुण्योंदय का फल व्यक्ति के वर्तमान जीवन को निर्धारित करने के साथ-साथ सुख-दुख, सफलता, विफलता, और अन्य परिस्थितियाँ तयः होती है वही बुरे कर्मो का फल इस जन्म मै भोगना पड़ता है जिससे धन संपत्ति कमी या संतान संवधी समस्याए दुख भी सकते है मनुष्य की मूल स्वरूप स्वम आत्मा है जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती ये जैसे पहले थी वैसी आज है कल भी रहेगी' शरीर मृत्यु के बाद जीवात्मा पुन: धारण कर लेती है यह चक्र हमेशा चलता रहेगा।
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