फेसबुक की पूर्व डेटा वैज्ञानिक सोफी झांग के एक खुलासे ने फेसबुक के लिए बड़ी परेशानी पैदा कर दी है। फेसबुक की इस पूर्व कर्मचारी ने खुलासा किया था कि सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी ने अपने प्लेटफॉर्म पर गलत सूचनाओं और नफरत भरी खबरों पर कोई कार्रवाई नहीं की थी, जिसका कथित तौर पर 2019 के आम चुनावों पर असर पड़ा था। यह सारी जानकारी अब कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाले सूचना प्रौद्योगिकी की संसदीय समिति तक पहुंच गई है। बताया जा रहा है झांग ने फेसबुक के खिलाफ कुछ डोजियर संसदीय समिति को मुहैया कराए हैं। जानकारी के मुताबिक व्हिसलब्लोअर के इस डोजियर के बाद संसद की आईटी पैनल ने फेसबुक इंडिया के अधिकारियों को तलब किया है।
सोफी गवाही देंगी या नहीं 29 नवंबर को होगा फैसला
वहीं सोफी झांग की पेशकश पर अंतिम निर्णय संसदीय समिति के सदस्यों को लेना है। जानकारी के मुताबिक इस मुद्दे पर सोमवार यानी 29 नवंबर को होने वाली बैठक में इस पर निर्णय लिया जाएगा। यदि सभी सदस्यों की सहमति बनती है तभी उन्हें गवाही के लिए बुलाया जा सकता है। उससे पहले शशि थरूर ने एक नवंबर को ट्वीट कर कहा था ‘हमारी प्रक्रियाओं के तहत वीडियोकांफ्रेंसिंग की अनुमति नहीं है। विदेश से व्यक्तिगत रूप से यदि कोई गवाही देना चाहता है तो इसके लिए अध्यक्ष की सहमति की आवश्यकता होती है, जो ली जा रही है बताया जा रहा है कि सोमवार को होने वाली बैठक "नागरिकों की सुरक्षा' विषय पर फेसबुक इंडिया के प्रतिनिधियों का पक्ष सुना जाएगा और डिजिटल स्पेस में महिला सुरक्षा पर विशेष जोर देने सहित सोशल/ऑनलाइन समाचार मीडिया प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग की रोकथाम पर भी बात होगी।
पहले भी फेसबुक को किया जा चुका है तलब
आईटी पैनल ने इससे पहले द वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण मांगते हुए भी फेसबुक को तलब किया था, जिसमें खुलासा हुआ था कि कैसे सोशल मीडिया कंपनी ने जानबूझकर तेलंगाना के एक भाजपा नेता के नफरत भरे भाषणों पर आंखें मूंद ली थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक को डर था कि यदि उसने इस पर कोई कार्रवाई की तो इससे भारत में फर्म के व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंच सकता है, जो इसका सबसे बड़ा बाजार है।
सोफी को दुनिया ने कब जाना
झांग फेसबुक की साइट इंटीग्रिटी टीम में काम कर चुकी हैं। कंपनी विरोधी गतिविधियों के कारण झांग को बाद में कंपनी से निकाल दिया गया था। तब से वे फेसबुक के खिलाफ मोर्चा खोले हुई हैं। झांग ने फरवरी 2020 के दिल्ली चुनावों को लेकर भी आंतरिक मेमो में यह चेतावनी दी थी कि चुनावों को प्रभावित करने का प्रयास किया गया था, जिसमें "एक हजार से अधिक" लोग शामिल थे।
झांग के मेमो को सितंबर 2020 में बजफीड न्यूज ने रिपोर्ट था, उसके बाद ही दुनिया ने उनके बारे में जाना। करीब 8000 शब्दों में लिखे गए मेमो में यह आरोप लगाया गया है कि फेसबुक "सबूत पर कार्रवाई करने में सुस्त" है और प्लेटफॉर्म के नकली एकाउंट्स की वजह से दुनिया भर में चुनावों और राजनीतिक मामलों को कमजोर किया जा रहा है।
चुनाव को प्रभावित करने वाले फर्जी एकाउट्स ढूंढने लगीं
नौकरी से निकाले जाने से पहले, झांग को आधिकारिक तौर पर कंपनी में निम्न-स्तरीय डेटा वैज्ञानिक के रूप में नियुक्त किया गया था। लेकिन वह एक ऐसे कार्य में व्यस्त हो गई थी जिसे वह ज्यादा अहम मानने लगी थीं। मसलन फर्जी खातों को ढूंढना और निकालना जिनका उपयोग विश्व स्तर पर चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनके मेमो से पता चला कि उन्होंने भारत, मैक्सिको, अफगानिस्तान और दक्षिण कोरिया सहित दर्जनों ऐसे देशों की पहचान की थी, जहां इस प्रकार के फर्जी एकाउंट्स के दुरुपयोग से राजनेता आसानी से जनता को गुमराह कर रहे थे और सत्ता हासिल कर रहे थे। बताया जाता है कि वे बार-बार कंपनी के नेतृत्व के सामने यह समस्या लेकर गईं लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया गया। मीडिया को दिए गए कई इंटरव्यूज में उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने उसे राजनीतिक काम से दूर रहने और उन्हें अपने काम पर ध्यान देने को कहा था। जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो फेसबुक ने उन्हें निकाल दिया।
लेकिन यह सब 2020 के अमेरिकी चुनाव से ठीक दो महीने पहले हुआ था और वे यह सोच कर परेशान हो गई थीं कि अगर इस मेमो को समय से पहले प्रेस को जारी किया गया तो चुनावी प्रक्रिया में जनता का भरोसा कम हो सकता है। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने राहत की सांस ली और चुनाव होने के बाद वह अपनी मूल योजना के साथ आगे बढ़ी। अप्रैल में, उन्होंने गार्जियन में दो लेख लिखे। जिसमें उन्होंने सोशल राजनीतिक हेरफेर और इससे निपटने में फेसबुक की लापरवाही का खुलासा किया था। हालांकि फेसबुक के प्रवक्ता जो ओसबोर्न ने उनके दावों का जोरदार खंडन किया था।
फेसबुक ने आरोपों का किया था खंडन
फेसबुक पर गंभीर आरोप लगाने वाली झांग ने कंपनी की तरफ से कानूनी कार्रवाई होने और भविष्य की नौकरियों पर भी खतरा होने का जोखिम लिया। वे अब खुलकर अपनी कहानी बताने के लिए तैयार है। वह चाहती हैं कि दुनिया यह समझे कि दुनिया भर में लोकतंत्र की रक्षा करने की कोशिश में वह कैसे शामिल हुईं। वे अब खुलकर मीडिया से बात कर रही हैं और