विदेशी सत्ता का खूनी पंजा तोड़ने के लिए तात्याटोपे ने ताउम्र संघर्ष कर दे दिया अपना बलिदान :अवस्थी

अमरशहीद तात्याटोपे के बलिदान दिवस पर बक्सपुर विद्यालय में उन्हें किया गया याद 

बदरवास - प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक अमरशहीद तात्याटोपे के बलिदान दिवस पर शासकीय माध्यमिक विद्यालय बक्सपुर में कार्यक्रम आयोजित किया गया और उनके अमर बलिदान को याद कर पुष्पांजलि देकर नमन किया गया। महान क्रांतिकारी अमरशहीद तात्याटोपे के बलिदान दिवस की शुरुआत  दीप प्रज्ज्वलन से हुई।शिक्षक गोविन्द  अवस्थी,जितेंद्र शर्मा,रीना विश्वकर्मा, अनीस मोहम्मद कुरैशी सहित छात्र छात्राओं ने तात्याटोपे की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया। विद्यार्थियों को तात्याटोपे के जीवनवृत्त और बलिदान से परिचित कराते हुए प्रधानाध्यापक गोविन्द अवस्थी ने कहा कि "शीश दे अपमान को सहते नहीं,जो गुलामी में कभी रहते नहीं" ये पंक्तियांअमर शहीद तात्याटोपे पर सटीक बैठती हैं । 

भारत की स्वतंत्रता को छोड़कर और कोई अभिलाषा इस अमरशहीद को नहीं थी। भारतमाता की आजादी के लिए तात्याटोपे के त्याग और बलिदान ने इस महावीर को अमर बना दिया। उनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण,प्रेरणादायी और बेजोड़ थी

स्वतंत्रता संग्राम के अमर बलिदानियों का योगदान राष्ट्र और हमारे लिए गौरव का विषय है।विदेशी सत्ता का खूनी पंजा तोड़ने के लिए अमर शहीदों ने ताउम्र संघर्ष कर अपना बलिदान दे दिया। महायोद्धा अमर शहीद तात्याटोपे का सम्पूर्ण जीवन पराक्रम और संघर्ष से भरा रहा। तात्याटोपे का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के पास येवला नामक स्थान पर हुआ था।इनका पूरा नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलेकर था। रामचंद्र के अनुज उन्हें आदरपूर्वक तात्या(बड़े भाई) कहा करते थे।एक बार किसी कार्य से प्रशन्न होकर बाजीराव ने तात्या को रत्नजड़ित टोपी उपहार में दी थी जिससे वह टोपे कहलाने लगे। तात्याटोपे ने अकेले रहकर भी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दो वर्ष तक जारी रखा।उनका लालन पालन निर्वासित पेशवा के परिवार में हुआ जहां उन्होंने युद्धकला सीखी। उनके युद्धकौशल की तारीफ उन दिनों कई विदेशी साहित्यकार करते थे। तात्याटोपे गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे और उनके पराक्रम,युद्धकला तथा अचानक छापामार हमले से अंग्रेजी सेनाएं ख़ौफ़ खाती थी। ताउम्र तात्याटोपे ने कभी पराजय स्वीकार नहीं की और वे लगातार क्षेत्र बदलकर अंग्रेजों से लोहा लेते रहे और आमजन को स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु जाग्रत करते रहे। महारानी लक्ष्मीबाई की अंतिम सांस तक महायोद्धा तात्या उनके सेनापति के रूप में उनकी ढाल बने रहे।भारत के अनेकानेक स्थानों पर उन्होंने क्रांति का नेतृत्व किया तथा अंग्रजों से उनकी भिड़न्त होती रही।

अवस्थी ने कहा कि तात्याटोपे का संबंध मध्यभारत से काफी रहा और वे  नरवर,ग्वालियर, ईसागढ़,चंदेरी,मुंगावली,खुरई,सागर,राजगढ़,होशंगावाद,इंदौर आदि स्थानों पर आतेजाते रहे। कई बार अंग्रेजों की सेना उन्हें चारों ओर से घेरकर आक्रमण कर देती थी और बचना मुश्किल हो जाता था किंतु तात्या अपनी अदभुत युद्धकौशल,वीरता,धैर्य,साहस एवं सूझबूझ से अंग्रेजी सेना को धराशायी कर देते थे। तात्या प्रत्येक अवस्था में प्रत्येक क्षण अंग्रेजों के लिए भारी परेशानी तथा विकट समस्या बने रहे।

क्रांतिवीर तात्याटोपे की गिरफ्तारी के बाद उन दिनों इंग्लैंड की महारानी की ओर से यह घोषणा हुई थी कि जो लोग अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कार्य करना बंद करके उसके सम्मुख आत्मसमर्पण कर देंगे तो उन्हें क्षमा कर दिया जाएगा लेकिन भारतमाता के इस लाल को तो इससे अच्छा फांसी का फंदा ही लगा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया और 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।तात्याटोपे ने अविचलित भाव से फांसी के फंदे को अपने गले में डाल लिया और क्रांतिवीर तात्याटोपे अमरशहीद के पद पर प्रतिष्टित हो गए। अवस्थी ने कहा कि  तात्याटोपे जैसे अमर शहीदों ने अपना सर्वस्व अर्पण कर भारत माता को हंसते हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए। अमरशहीद देशभक्तों ने अंग्रेजी हुकूमत की अमानवीय यातनाएं सहीं।हमें इन शहीदों के प्रति सम्मानभाव रखते हुए इनके बलिदान को हमेशा स्मरण रखना चाहिए। औऱ इनसे प्रेरणा लेकर जीवन में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करना ही सच्ची श्रद्दांजलि होगी।

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