कोलारस - रक्षावंधन का मुहुर्त एवं समय - निर्णय सागर पंचाग नीमल में रक्षावंधन 11 अगस्त गुरूवार को है 2 भुवन विजता पंचाग में रक्षावंधन 11 अगस्त मध्यप्रदेष गुरूवार को है। 3 ऋषिकेष पंचाग मेें भी रक्षावंधन 11 अगस्त गुरूवार को है तथा जन-जन में प्रचलित कलेंडरों में भी रक्षावंधन 11 अगस्त गुरूवार को है सभी पंचाग में भद्रा उपरान्त रक्षावंधन के लिये लिखा गया है जबकि भद्रा परिहार के अनुसार पंचाग कारको ने इस विन्दु पर विचार नहीं अवष्य किया होगा इस लिये सभी पंचागों के लेख अनुसार हमें भी भद्रा का विचार करना चाहिए एवं हमें भद्रा पुच्छ या भद्रा उपरांत रक्षावंधन पर्व मनाना चाहिऐं।
रक्षावंधन का शुभ समय - शाम 5ः16 से रात्रि 9ः38 तक मनाऐं।
श्रावणी उपाकर्म एवं सप्रऋषि पूजन दिनांक 11 अगस्त गुरूवार को नहीं कर सकते क्योकि शास्त्रों में रात्रि में सूर्याष्त के बाद स्नान वर्जित मनु स्मृति के अनुसार।
अतः श्रावणी उपाकर्म सप्रऋषि पूजन दिनांक 12 अगस्त शुक्रवार को व्रह्रमुहुर्त में करें।
अन्य विधवानों की राय कुछ इस प्रकार है-
रक्षाबंधन मुहूर्त एवं उपाय - भाई बहन के पावन रिश्ते का त्योहार रक्षाबंधन हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा युगों से मनाया जा रहा है इस त्योहार के माध्यम से भाई बहन के बीच आपसी जिम्मेदारी और स्नेह में वृद्धि होती है।
रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।
भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व रक्षाबंधन का त्योहार श्रावणी पूर्णिमा 11 अगस्त को मनाया जाएगा इस दिन पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त प्रातः 10ः39 से 12 अगस्त प्रातः 07ः05 तक होने से यह त्योहार 11 अगस्त को ही प्रातः 10ः39 से पूरे दिन मनाया जाएगा।
शास्त्रानुसार रक्षाबंधन में भद्रा टाली जाती है, जो इस बार प्रातः 10ः32 से रात्रि 8ः30 तक रहेगी लेकिन भद्रा का वास पाताल लोक मे होने से रक्षाबंधन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
रक्षाबंधन शुभ समय - रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास में उस दिन मनाया जाता है जिस दिन पूर्णिमा अपराह्ण काल में पड़ रही हो हालाँकि आगे दिए इन नियमों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
1 यदि पूर्णिमा के दौरान अपराह्ण काल में भद्रा का वास पृथ्वी पर हो तो रक्षाबन्धन नहीं मनाना चाहिए ऐसे में यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो पर्व के सारे विधि-विधान अगले दिन के अपराह्ण काल में करने चाहिए।
2 लेकिन यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में न हो तो रक्षा बंधन को पहले ही दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मना सकते हैं यद्यपि पंजाब आदि कुछ क्षेत्रों में अपराह्ण काल को अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है, इसलिए वहाँ आम तौर पर मध्याह्न काल से पहले राखी का त्यौहार मनाने का चलन है लेकिन शास्त्रों के अनुसार भद्रा का वास केवल पृथ्वी पर होने पर रक्षाबंधन मनाने का पूरी तरह निषेध है, चाहे कोई भी स्थिति क्यों न हो।
ग्रहण सूतक या संक्रान्ति होने पर यह पर्व बिना किसी निषेध के मनाया जाता है।
ज्योतिष पंचांगों के अनुसार पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 11 अगस्त 2022 को दिन 10 बजकर 39 मिनट ऋषिकेश के स्थानिय समय अनुसार होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन 12 अगस्त को प्रातः 07 बजकर 05 मिनट पर होगा।
इस बार भद्रा 11 अगस्त 2022 को प्रातः 10 बजकर 32 मिनट से शुरू होगी और रात्रि 08 बजकर 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगी एक बार फिर से ध्यान दें जैसे की कुछ मनगढंत लोगों द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा है की भद्राकाल मे राखी बाँधने से रावण की मृत्यु हुई इसमे भी यह बात स्पष्ट नहीं है की रावण की मृत्यु के समय भद्रा का वास किस लोक मे था अगर भद्रा वास मे राखी बाँधने से ही रावण की मृत्यु हुई तो रावण द्वारा किये गये कुकर्माे (पापों) का क्या महत्त्व रह गया दूसरा भ्रम है की अगले दिन उदयकालीन तिथि के अनुसार 12 अगस्त को पूरे दिन राखी बाँध सकते है यह भी गलत है क्योंकि 12 अगस्त को पूर्णिमा 3 घड़ी से बहुत कम है ऐसी स्थिति मे राखी प्रतिपदा तिथि को बाँधना उचित कैसे हुआ तीरसा भ्रम भद्रा का डाला जा रहा है जबकि पाताल भद्रा का अशुभ प्रभाव पृथ्वी पर नहीं पड़ता है इसलिए निःसंकोच होकर रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त को ही मनाये।
भद्रा को लेकर सुप्रसिद्ध धर्म ग्रन्थों का निर्णय
सुप्रसिद्ध धर्म ग्रन्थों निर्णय सिन्धु, धर्म सिन्धु, पुरुषार्थ चिन्तामणि, कालमाधव, निर्णयामृत आदि के अनुसार दिनांक 12 अगस्त को पूर्णिमा तिथि दो मुहूर्त से कम होने के कारण दिनांक 11 अगस्त को ही श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बन्धन शास्त्र सम्मत हैं।
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