ऐसा माना जाता है कि सभी तीर्थों का राजा "प्रयागराज" है। एक बार "प्रयागराज" के मन में ऐसा विचार आया, कि सभी तीर्थ मेरे पास आते है, केवल वृन्दावन मेरे पास नही आता.
प्रयागराज बैकुण्ठ में गए और प्रभु से पूछा....
प्रभु, आपने मुझे तीर्थों का राजा बनाया,
लेकिन वृंदावन मुझे टैक्स देने नहीं आते ......भगवान बहुत हंसे और हंसकर
बोले.... हे "प्रयाग"!!मैंने तुझे केवल तीर्थो का राजा बनाया, मेरे घर का राजा नहीं बनाया। बृज वृन्दावन कोई तीर्थ नही है,वो मेरा घर है.... और घर का कोई मालिक नही होता.... घर की मालकिन होती है......वृन्दावन की अधीश्वरी श्रीमती राधारानी है और राधारानी की कृपा के बिना बृज में प्रवेश नहीं हो सकता....कर्म के कारण हम शरीर से बृज में नहीं जा सकते, लेकिन मेरा मन तो बृज वृन्दावन में वास करता है....प्रेम इतना व्यापक और वरेण्य होता है कि भगवान भी उसके बिना नहीं जी सकते.....भगवान कहते है.....
राधे मेरी स्वामनी, मै राधे को दास...
जन्म जन्म मोहे दीजियो
श्री वृंदावन वास..
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