देव लोक से प्रारम्भ हुआ करवा चौथ व्रत, विशुद्ध मन से व्रत करने पर रहती है सुख शांति

कोलारस - करवा चौथ का व्रत गुरूवार को रखा जायेगा गुरूवार को सनातन धर्म से जुड़ी महिलाऐं वर्ष में एक दिन पड़ने वाले करवा चौथ के व्रत-उपवास को रखती है इस दिन महिलाऐं सूर्य उदय से लेकर चंद्र उदय तक बिना कुछ खाये-पीये यह व्रत रखती है चंद्र उदय के बाद चंद्रमा की पूजा एवं करवा चौथ की कथा श्रवण के बाद महिलाओं द्वारा छलनी में चंद्रमा देखने के बाद पति द्वारा करवें में जल को महिलाओं को पिलाने के बाद व्रत को महिलाऐं खोलती है यह परम्परा देव लोक से चली आ रही है जिसे वैष्णव सम्प्रदाय की महिलाऐं आज भी उस परम्परा का निर्वाह्रन करती है।

यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और उनके खुशहाल जीवन के लिए रखती हैं. करवा चौथ दो अलग अलग शब्द से मिलकर बना है जिसमे करवा एक श्मिट्टी का बर्तनश् होता है जिसका इस व्रत में खास महत्व होता है. हालांकि इस पूजा में अब सिर्फ मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल नहीं होता इसकी जगह पर पीतल आदि के बर्तन का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है. 

करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के अटूट प्रेम, विश्वास और मजबूत रिश्ते का प्रतीक है. खासतौर पर विवाहित महिलाएं इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करती हैं. इसके साथ ही सुहागिन महिलाएं इस व्रत को बड़े ही श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं. पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला यह व्रत बेहद खास माना जाता है लेकिन क्या आप इस व्रत के इतिहास के बारे में जानते हैं अगर नहीं तो हम आपको बता रहे हैं करवा चौथ कैसे शुरू हुआ और इस व्रत का इतिहास क्या है. 

देवताओं की पत्नियों ने ब्रह्मा जी के कहने पर शुरू किया था करवा चौथ का व्रत 

प्राचीन कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत  देवताओं के समय से चली आ रही है कहा जाता है एक बार दानवों और देवताओं के बीच युद्ध शुरू हो गया इस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी ऐसे में देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास जाकर इस संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करने लगे.

ब्रह्मा जी ने देवताओं की पत्नियों को अपने अपने पतियों के लिए व्रत रखने और युद्ध में उनकी विजय के लिए प्रार्थना करने को कहा साथ ही उन्होंने वचन दिया कि यह व्रत रखने से निश्चित रूप से देवताओं की जीत होगी. देवताओं की पत्नियों ने ब्रह्मा जी की यह बात खुसी खुसी मान ली और देवताओं की पत्नियों ने ब्रह्मा जी के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन व्रत रखकर अपने पतियों की जीत की पार्थना करने लगीं जिसने युद्ध में देवतागण विजयी हुए जिसके बाद देवताओं की पत्नियों ने चंद्रोदय के समय भोजन कर अपना उपवास पूरा किया माना जाता है तब से करवा चौथ व्रत की परंपरा शुरू हुई और महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखने लगी।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

संपर्क फ़ॉर्म