जीव जब गर्भ में आता है तो परम पिता से वादा करके आता है कि जीवन पर्यंत तेरा ही सुमरण करूँगा
Kolaras - नौ माह तक माँ के गर्भ मई कई तरह की यातनाएँ भुगतता है जैसे - माल मूत्र में मांस के लोथड़े के रूप में पड़ा रहता और जब भी माँ का चटपटा , खट्टा ,कसैला खाने का मन करता है और वो खाती है तो उसी मास के लोथड़े के ऊपर जाकर गिरता है तब वह जीव तड़फ उठता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु इस नरक से मुझे बाहर निकालो मई जीवन भर तेरा ही नाम जपूँगा।
लेकिन जब बाहर दुनिया में आता है तो माया में उलझ जाता है ।
बचपन खेल में खो देता है , जवानी मस्ती में। और जैसे ही बुढ़ापा आता है देखकर रोने लगता है ।
क्योंकि उस समय धन के साथ साथ शरीर रूपी धन भी ख़त्म हो चुका होता है ।
जीवन में जो भी किया बच्चे भी उसी को कोपी कर लेते हैं एर बुढ़ापे में ब्र्द्धाश्रम में छोड़ देते हैं ।
फिर रोता है कि बच्चे घर में नहीं रखते खना नहीं देते वग़ैरा वग़ैरा।
इसलिए कहता हूँ प्यारे समय रहते जाग जा और खुद को जानने की ओर बढ़ तो ही ईश्वर तेरा बेड़ा पार करेंगे नहीं तो जीवन मरण का यह चक्र यूँ ही निरंतर चलता रहेगा तू कभी भी आवागमन से मुक्त नहीं हो पाएगा ।
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