'नरक' से वापसी: महाराष्ट्र के गन्ना खेतों में बंधक बने 16 सहरिया मजदूरों की आँखों में अब भी तैर रहा 2 माह का खौफ - Shivpuri



पुलिस और सहरिया क्रांति ने 48 घंटे में दी आजादी

शिवपुरी - गुलामी की जंजीरें जब टूटती हैं तो इंसान सबसे पहले खुली हवा में सांस लेता है, लेकिन शिवपुरी के सेंवड़ा गाँव के उन 16 मजदूरों के लिए यह सांस भी भारी थी पिछले दो महीनों से महाराष्ट्र के सोलापुर में अमानवीय यातनाओं का दंश झेल रहे ये सहरिया आदिवासी जब अपने घर लौटे, तो मंजर भावुक कर देने वाला था आज जब ये मजदूर सहरिया क्रांति के संयोजक संजय बेचैन के निवास पर पहुँचे, तो उनका सब्र का बांध टूट गया वे गले लगकर रोने लगे उनकी सिसकियों में रिहाई की खुशी कम और उन काली रातों का खौफ ज्यादा था जिन्हें उन्होंने गन्ने के खेतों में बंधक बनकर भोगा था।

विश्वासघात और 1400 किलोमीटर दूर 'कालकोठरी

 इस दर्दनाक दास्तां की शुरुआत भरोसे के कत्ल से हुई सेंवड़ा गाँव का ही निवासी नीतेश आदिवासी करीब ढाई माह पहले एक ठेकेदार को लेकर आया था सुनहरे भविष्य और अच्छी मजदूरी का सपना दिखाकर उसने 5 परिवारों के 23-24 लोगों को सोलापुर (महाराष्ट्र) जाने के लिए राजी कर लिया भूख और गरीबी से जूझ रहे इन भोले-भाले आदिवासियों को लगा कि शायद 15 दिन की मेहनत उनकी किस्मत बदल देगी लेकिन उन्हें क्या पता था कि वे मजदूरी करने नहीं, बल्कि एक आधुनिक जेल में कैद होने जा रहे हैं।

वहाँ पहुँचते ही नीतेश, जो उनका अपना था, मजदूरों के हिस्से के पैसे लेकर फरार हो गया इसके बाद शुरू हुआ ठेकेदार का कहर जो मजदूर बचे थे, उन्हें बंधक बना लिया गया सुबह 3 बजे अँधेरे में उन्हें नींद से जगाकर गन्ने के खेतों में झोंक दिया जाता और रात के 10 बजे तक, यानी लगातार 19 घंटे जानवरों की तरह काम कराया जाता। 

अगर कोई थकान से गिर पड़ता, तो लाठियों से पीटा जाता भरपेट खाना तो दूर, पीने का साफ पानी भी मयस्सर नहीं था इन मजदूरों के साथ मासूम बच्चे और किशोरियाँ भी थीं जो इस नरक को भोगने के लिए मजबूर थीं।

वह दिन जब सब्र का बांध टूटा यातनाओं का दौर चलता रहा, लेकिन घर पर रह गए परिजनों की बेचैनी बढ़ रही थी। अंततः 24 दिसंबर 2025 को सब्र का बांध टूट गया। सहरिया क्रांति के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में अशोक आदिवासी और पीड़ित परिवारों की महिलाओं ने शिवपुरी पुलिस अधीक्षक कार्यालय का घेराव किया। उनकी आँखों में आँसू और जुबां पर अपनों को खोने का डर था। उन्होंने एसडीओपी संजय चतुर्वेदी को अपनी आपबीती सुनाई और बताया कि कैसे उनके परिजन सोलापुर में कैद हैं और बिचौलिया नीतेश उन्हें बेचकर भाग गया है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक (SP) अमन सिंह राठौड़ ने इसे तत्काल संज्ञान में लिया। उन्होंने पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधाया और वादा किया कि उनके परिजनों को हर हाल में सुरक्षित वापस लाया जाएगा। यह महज एक आश्वासन नहीं था, बल्कि एक मिशन था।

एसपी अमन सिंह राठौड़ ने तुरंत सोलापुर (महाराष्ट्र) के पुलिस अधीक्षक अतुल कुलकर्णी और पंडरपुर के एसडीओपी प्रशांत डगले से संपर्क साधा। इधर, शिवपुरी से थाना प्रभारी सुभाषपुरा राजीव दुबे को एक्शन मोड में लाया गया। मोबाइल लोकेशन ट्रेस की गई तो पता चला कि मजदूर सोलापुर जिले के ग्राम पिराचीकिरौली, थाना पंडरपुर में हैं।

सूचना मिलते ही सुभाषपुरा थाने के उप निरीक्षक अनिल पाटिल अपनी टीम के साथ महाराष्ट्र के लिए रवाना हुए। लेकिन चुनौती बड़ी थी—मजदूरों के पास न पैसा था और न ही वापस आने का साधन। दूरी करीब 1400 किलोमीटर थी। तब एसपी शिवपुरी के निर्देश पर एक विशेष क्रूजर वाहन का इंतजाम किया गया। महाराष्ट्र पुलिस के सहयोग से जब शिवपुरी पुलिस की टीम पिराचीकिरौली के उस खेत में पहुँची, तो मजदूरों को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। पुलिस ने जब ठेकेदार के चंगुल से उन्हें मुक्त कराया, तो वे फूट-फूट कर रो पड़े। पूछताछ में पता चला कि नीतेश आदिवासी ने ही उन्हें इस हालत में पहुँचाया था।

महज 48 घंटे के भीतर, पुलिस ने 15 आदिवासियों को सकुशल रेस्क्यू कर लिया मुक्त कराए गए लोगों में बनवारी, सरबती, नीलम (18), रामबरन (11), लालाराम, सोमबती, ललिता, संदीप, साजन, नंदनी, संतोष, काजल, सुजना और संगीता शामिल हैं आज जब ये मजदूर अपने गाँव सेंवड़ा वापस पहुँचे, तो माहौल गमगीन था। सहरिया क्रांति के संयोजक संजय बेचैन ने कहा यह घटना आधुनिक भारत के माथे पर कलंक है यह सिर्फ मजदूरी का मामला नहीं, बल्कि मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी अधिनियम का खुला उल्लंघन है उन्होंने प्रशासन से माँग की है कि बिचौलिए नीतेश और दोषी ठेकेदार पर 'एट्रोसिटी एक्ट' और 'बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम' के तहत कड़ी कार्रवाई हो।

सहरिया क्रांति और पुलिस की तत्परता ने 16 जिंदगियाँ तो बचा लीं, लेकिन यह घटना एक बड़ा सवाल छोड़ गई है। आखिर कब तक पेट की आग बुझाने के लिए आदिवासियों को अपनी आजादी गिरवी रखनी पड़ेगी? फिलहाल, सेंवड़ा गाँव में खुशी की लहर है, लेकिन उन 16 जोड़ी आँखों में बसा खौफ जाने में अभी वक्त लगेगा।

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