सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया। संशय को खत्म करते हुए अदालत ने व्यवस्था दी कि दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्रीय आरक्षण नीति ही मान्य होगी। यहां पूरे देश के लोग नौकरियों में आरक्षण का लाभ ले सकते हैं। हालांकि अन्य राज्यों के मामले में ऐसा नहीं है। वहां एक राज्य में एससी-एसटी का व्यक्ति दूसरे राज्य में जाकर सरकारी नौकरी में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता। दर्जा साथ नहीं जाता:जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि किसी एक राज्य में अनुसूचित जाति के किसी सदस्य को दूसरे राज्यों में भी अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता, जहां वह रोजगार या शिक्षा के इरादे से गया है। यह व्यक्ति अपना एससी-एसटी का दर्जा दूसरे राज्य में लेकर नहीं जाता। हालांकि वह वहां रहकर अपने मूल राज्य में आरक्षण का दावा कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि यह दावा वह दिल्ली समेत केंद्र शासित प्रदेशों में कर सकता है, जिनकी सेवाओं को अखिल भारतीय सेवा माना गया है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एन.वी. रमना, आर. भानुमति, एम. शांतानागौडर और एस.ए. नजीर शामिल हैं। हालांकि जस्टिस भानुमति ने दिल्ली में एससी-एसटी के बारे में केंद्रीय आरक्षण नीति लागू होने के संबंध में असहमति जताई।
विवाद संविधान पीठ के सामने सवाल उठाया गया था कि क्या एक राज्य में एससी-एसटी के रूप में अधिसूचित व्यक्ति दूसरे राज्य में आरक्षण प्राप्त कर सकता है?
समाधान अदालत ने कहा एक राज्य में एससी-एसटी का व्यक्ति दूसरे राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता। कोई राज्य लाभ देना चाहता है तो उसे केंद्र से बात करनी पड़ेगी। केंद्र उस राज्य के लिए एससी-एसटी की सूची में संशोधन करेगा।