इस साल 30 अगस्त को हरतालिका तीज व्रत है। हर साल ये त्योहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है ये व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए है इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं वहीं कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए ये व्रत रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं मां गौरी और शिव जी की पूजा करती हैं साथ ही सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं विवाहित महिलाओं के लिए ये व्रत बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। हरतालिका तीज व्रत कठिन होता है, क्योंकि इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं। इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा सुनने से ही पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। चलिए जानते हैं हरतालिका तीज व्रत कथा के बारे में...
कैसे पड़ा हरतालिका तीज का नाम ?
एक पौराणिक कथा के अनुसार, पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गई थीं। ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें, क्योंकि देवी पार्वती ने मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था। पार्वती जी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं।
जंगल में अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा।
हरतालिका तीज व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देवी सती सहन नहीं कर पाई थीं और उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया। वहीं अगले जन्म में उन्होंने राजा हिमाचल के यहां जन्म लिया और इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। देवी पार्वती ने शिव जी को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं थीं। उनकी हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता सताने लगी और उन्होंने नारदजी से इस बारे में बात की। इसके बाद देवी पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से कराने का निश्चय किया गया। लेकिन देवी पार्वती विष्णु जी से विवाह नहीं करना चाहती थीं। उनके मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं।