सहरिया युवा भोला ने संघर्षों को सीढ़ी बनाकर रौशन किया अपने सपनों का आसमान - Shivpuri



भोलाराम आदिवासी जिसने संघर्ष से बदली अपनी ज़िंदगी अव बने समाज को प्रेरणास्त्रोत

सफलता की कहानी

दिहाड़ी मजदूरी कर पढ़ाई की और आज बने तकनीकी शिक्षा विभाग में प्रशिक्षण अधिकारी

अभावों की राख में जलता जुनून, सफलता की चिंगारी बना भोलाराम आदिवासी


शिवपुरी - कहते हैं कि बड़ी सफलता वहीं जन्म लेती है जहाँ सपने टूटते-टूटते भी साँस लेने की हिम्मत रखते हैं शिवपुरी विधानसभा के ग्राम मोहनगढ़ के 31 वर्षीय भोलाराम आदिवासी की जिंदगी इसी जिद और जुनून की कहानी है गरीबी, सीमित साधन और हर मोड़ पर चुनौतियों के बावजूद इस आदिवासी युवा ने न केवल अपने सपनों को जिंदा रखा बल्कि इतनी मजबूत उड़ान भरी कि अब वही उड़ान सैकड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है।


भोलाराम आदिवासी के पिता शिब्बू आदिवासी खेतों और मजदूरी में मेहनत कर परिवार का गुजारा करते हैं घर में 6 बच्चे और कम साधन बचपन से भोलाराम को पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि थी और कुछ अलग करने की आग उनके भीतर लगातार जलती रहती थी लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति उनके सपनों के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा थी कई बार ऐसा हुआ कि हालात ने उन्हें रुकने के लिए उकसाया, मगर भोलाराम ने अपनी आँखों में भरे सपनों की चमक फीकी नहीं पड़ने दी अंततः पिता ने बेटे की आँखों में लिखी उम्मीद पढ़ी और कक्षा 10 से आगे पढ़ाई की अनुमति दे दी।


इसके बाद शुरू हुआ संघर्षों का असली सफर भोलाराम पढ़ाई के लिए शिवपुरी आ गए अपने दम पर किराए पर एक छोटा-सा कमरा लिया और सुबह 8 बजे से दिहाड़ी मजदूरी शुरू कर दी मजदूरी से मिले पैसों से उन्होंने कोचिंग की फीस भरी और बाकी रात पढ़ाई में झोंक दी दिन भर श्रम की थकान और रात की नींद से लड़ते हुए उन्होंने कहा मैं बोझ नहीं, परिवार का सहारा बनूँगा इस वाक्य ने उन्हें हर दिन और मजबूत बनाया सड़क के किनारे बैठकर स्ट्रीट लाइट में पढ़ने तक की नौबत आई, पर सपनों को बुझने नहीं दिया।


लगातार निर्धारित लक्ष्य और अथक मेहनत का नतीजा रहा कि वर्ष 2017 में भोलाराम ने पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा उत्तीर्ण कर नौकरी हासिल की यह पल परिवार के लिए गौरव और राहत लेकर आया, मगर भोलाराम अभी मंजिल पर नहीं पहुँचे थे उन्होंने ड्यूटी के साथ पढ़ाई जारी रखी छुट्टियों में लाइब्रेरी और ड्यूटी के बाद किताबें नींद से ज्यादा दर्द था सपनों का टूटना, इसलिए वे नहीं सोए, बस पढ़ते रहे।


संघर्ष कभी भी सीधा रास्ता नहीं देता कई बार हताशा घिरी, असफलताएँ आईं, मगर उनकी हिम्मत नहीं टूटी छह वर्षों की अनवरत मेहनत का फल आखिरकार मिला भोलाराम का चयन अशोकनगर जिले के तकनीकी शिक्षा विभाग में प्रशिक्षण अधिकारी के रूप में हुआ यह क्षण सिर्फ उनकी जीत नहीं थी यह हर उस सपने की जीत थी जिसे अक्सर गरीबी कुचल देती है आज भोलाराम आदिवासी गर्व के साथ सरकारी अधिकारी हैं और उनका परिवार व गांव गर्व से सिर ऊँचा कर कह रहा है यही है हमारे सपनों की मेहनत का सितारा।


इस सफलता ने सहरिया और आदिवासी समाज में नई ऊर्जा भर दी है। भोलाराम से प्रेरणा लेकर दो दर्जन से अधिक युवा शहर आकर पढ़ने लगे हैं और कई सरकारी सेवा में पहुँच चुके हैं। भोलाराम आज भी सोशल मीडिया और व्यक्तिगत मार्गदर्शन के माध्यम से रोजगार परक जानकारी देते हैं, बच्चों को हिम्मत और शिक्षा की रोशनी दिखाते हैं। उनका मानना है कि शिक्षा ही वह हथियार है जो उनके समाज को पिछड़ेपन से बाहर निकाल सकता है। वे कहते हैं हमारा सहरिया समाज इसलिए पीछे है क्योंकि शिक्षा का अभाव है। अगर कोई ठान ले तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं है।आज सहरिया क्रांति आंदोलन ने जो जाग्रति की अलख जगा ई उसका परिणाम है कि कई सहरिया युवा आज सरकारी सर्विस मे आ रहे हैं

भोलाराम की कहानी यह सिखाती है कि गरीबी और अभाव मंजिल नहीं रोकते, बस सफर कठिन बनाते हैं। जिसने रास्तों को हौसलों से रोशन करना सीख लिया, उसकी मंजिल उससे दूर नहीं रहती। मोहनगढ़ का यह संघर्षशील बेटा आज हजारों युवाओं के दिलों में यह विश्वास जगाता है कि किस्मत वही बदलती है, जो बदलने की जिद रखता है। भोलाराम आदिवासी इस बात की जीवंत मिसाल हैं कि सपनों की कीमत मेहनत से चुकानी पड़ती है और जहाँ मेहनत होती है, वहाँ सफलता झुककर सलाम करती है।आज सुबह से ही वे सोशल मीडिया पर युवाओं को रोजगार मूलक जानकारी के साथ ही होसला देते हैं ।

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